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शब्द । मच्छ जो मत्स्योदरी सो शिकारी जो शंतनु ताकेसाथ भय ते रमन लगी । सिंहसमर्थ को कहै हैं सो समर्थ ने बड़े बड़े दानव थलेके रहैया ते समुद्र बसजाय ॥ २ ॥ रेड़ा रूख भया मलयागिरि चहुं दिशि फूटी वासा ।। तीनि लोक ब्रह्मांड खंडमें देखै अंध तमासा ॥३॥ रेड़ा रूख जेहैं,सवरी, वारार, निषादादिक जिनको वेदकाअधिकार नहीं रह्यो, तेङ चंहनदैगये । उनकी बास चारिदिशा फूटी कहे उनको यश सबकोई गावै है। चंदन औरौ वृक्षनको चंदन करै है ऐसे औरहूको साधु बनावनवारे ये सब भये तामें प्रमाण ॥"नजन्मनूनंमहतोनसौभगं नवानबुद्धिनकृतिस्तोषहेतुः । तैर्यदिसृष्टानपिनोवनौकसश्चकारसख्येवतलक्ष्मणाग्रजः इतिभागवते ॥ औ आँधरेजे हैं धृतराष्ट्र तिनको कृष्णचन्द्र ब्रह्माण्ड भरेको तमाशा जिनकी सामथ्वैते शरीरहीमें देखायदयो । नारायण औ कृष्णचन्द्र साहबकी सामर्थ्यते करै हैं। तामेंप्रमाण ॥ * यस्यप्रसादाद्देवेशममसामर्थ्यमीदृशम् । संहरामिक्षणादेवत्रैलोक्यंसचराचरम् ॥ धातासृजतिभूतानि विष्णुद्धरयतेजगत् । इतिसारस्वततंत्रे ॥ कृष्णचंदको अवतार विष्णुहीते होइहै सो पुराणनमें प्रसिद्ध है ॥ ३ ॥ पंगुल मेरु सुमेरु उलंघे त्रिभुवन सुक्ताडोले। गुंगा ज्ञान विज्ञान प्रकाशै अनहद बाणी बोलै ३३ ४॥ औ जिनके अघटित घटना सामर्थ्यते पंगु जे हैं अरुण ते पृथ्वीकी कीला जे हैं सुमेरु तिसको रोज उलंधै हैं नांपैयै हैं । अथवा पंगुजा हैं राहु जाके शिरै भरहै गोड़ हाथ नहीं है ससुमेरु का नाघत रहै है औ मुक्तने हैं नारद शुक कबीर आदिक जे संसार ते मुक्त छैकै मनादिकन को छोड़िकै साहब के पास गये हैं औ यह शास्त्रमें लिखे है कि, उहांके गयेपुनि नहीं अवै है। परन्तु तेऊ साहबकी सामथ्र्थते त्रिभुवनमें डोलै हैं संसारबाधा नहीं करिसकै है । आ जब शुकाचार्य निकसे हैं तब व्यास पछुआन जात रहे हैं तब गूगे जे बृक्ष हैं तेऊ व्यासको समुझायो है । औ मध्वाचार्य जब भिक्षाटन को निकसे