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( २५२) बीजक कबीरदास । येते लाँगहि फल नहिं लागै चंदन फूल न फूले। मच्छ शिकारी रमैनँगलमें सिंह समुद्रहिफूलै ॥२॥ रेड़ा रूख भया मलयागिरि चहुँदिशि फूटी बासा ।। तीनि लोक ब्रह्मांड खण्डमें देखें अंध तमासा ॥३॥ पंगुल मेरु सुमेरु उलंधै त्रिभुवन मुक्ता डोलै । गूंगा ज्ञान विज्ञान प्रकाशै अनहद बाणी बोलै ॥ ४॥ बांधि अकाश पाताल पठावे शेष स्वर्गपर राजै ।। कहै कबीर राम हैं राजा जो कछु करें सो छाजै ॥५॥ जोपूर्व यह कहि आये कि रामैनहीं खोदाइउ नहीं हैं जिनते समीची गतिहोइ है तिनके पदगहौ ते कौन पुरुप हैं तिनकी सामथ्र्यं कहिंकै खोलिकै या शब्दमों बतायो है। अब याकी टीका लिखते हैं। | अवधू कुदरतिकी गति न्यारी रंक निवाज कैरै वह राजा भूपति करै भिखारी ॥ १॥ येते लाँगहि फल नहि लागै चंदन फूल न फूलै। मच्छ शिकारी रमै जंगलमें सिंह समुद्रहि झूलै ॥२॥ हे अवधू जीवौ ! परम परपुरुष जे श्रीरामचन्द्र तिनकी कुदरति कहे सामर्थ्य की गति न्यारी है । सुग्रीव जे पुत्रकलत्रते हीन, भिखारीकी नाई बन बन पहाड़ पहाड़ बागत रहे तिनको निवाजिकै राजा बनाइ दियो । औ सबराजनके जीतनबारे जे क्षत्रिय तिनको मारि कै पृथ्वी भूसुरन दैडारेउ । नारायण के अवतार ऐसे परशुराम तिनको भिखारी करिदियो ॥ १ ॥ लवंगमें फल नहीं लागै सोऊ लागै, चंदनमें फूल नहीं फूलै साऊ फूलै है जाकी सामर्थ्य ते । सो बाल्मीकीयमें लिख्यो है जबश्रीरघुनाथजी अयोध्याजी आये हैं। तब ने बृक्षफलै फूलैवाले नहीं रहे सूखेरहे तेङ फाल फूलिआये हैं । औ