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शब्द। (२४३) है। औ वही गुनाहका बख्शनेवाला है औरे के छुड़ाये न छूटैगो । जब श्रीरामचन्द्र जीवको छोड़ावेंगे तबहीं छूटैगो । ॐ खोदाके सौ नाम हैं निन्नानब सगुणनाम हैं, औ मुक्ति को देनवारा निर्गुण अल्लाह नामही है वही खुद खामिदुका नाम है । तने वात वेद शास्त्रनमें भी सिद्धान्त किया है । कोई कोई जे साहबके पहुंचे हैं ते वेग्रंथ जानै हैं सो लिख्यो है कि, और देवतनके नामते अधिक और सब नाम भगवान्के हैं औ भगवान्के सब नामते अधिक रामनाम है । सो महादेवनी पार्वतीजी ते कह्या है ॥ “सहस्रनामतत्तुल्यंरामनामें वरानने । सप्तकोटिमहामंत्राश्चित्तविभ्रमकारकाः । एकएव परोमंत्रोरामइत्यक्षरद्धयम् । विष्णोरेकैकनामापि सर्ववेदाधिकंमतम् । तादृङ्गामसहस्रेणरामनामसमंस्मूतम् ॥ इतिपाझे। औ गोसाईनीहू लिख्यो है।‘रामसकल नामनते अधिका॥ सो यही रामनाम हैं अल्लाहनाम निकस्यो । “राम नामके मकारको रकार भये आगेको पीछे आया तब अरभया सो अर राके पीछे आया तब ‘‘अर राम भयो रलके अभेदसे अल्लाभयो व्याकरण बर्णबिकार बर्णकार बर्णविपर्यय पृषोदरादि पाठसे सिद्ध शब्दको साधनके वास्ते प्रसिद्धहै । औ जो सदाशिव संहितामें दशमुकाम लिखि आये हैं औ पहिले रेखतामें लिखि आये हैं सो कबीरजी पुनि खुद खाविंदको दूसरे रेखतामें वहीबात लिख्या है। “जुलमत नासत मलकूतमें फिरिस्ते नूर जल्लाल जबरूतमें जी । लाहूतमें नूर जम्माल पहिचानियै हक मकान हाहूतमें जी ॥ बका बाहूत साहूत मुर्सिद वारहै जोरब्ब राहूतमें जी । कहत कब्बीर अबिगति आहूतमें खुद्द खाविन्द नाहूत में जी ॥ १ ॥ सो वे जे परम परपुरुष श्रीरामचन्द्र हैं तिनके गुण सबते न्यारे हैं औ उनको धाम सबते परे वाककोई अंतनहीं पायो सो तिनके गुण हे जीव ! तुम कैसे पावोगे ॥ ५ ॥ इति अठारहवां शब्द समाप्त । अथउन्नीसवाँ शब्द ॥ १९ ॥ एतत राम जपो हो प्राणी तुम बूझो अकथ कहानी ।। जाको भाव होत हरि ऊपर जागत रौनि विहानी ॥१॥