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(२३६) बीजक कबीरदास । एकादशीव्रत नहिं जान भूत प्रेत हठि हृदय धेरै । तजि कपूर गाँठी विषबांधै ज्ञान गमाये सुगुध फिरै॥४॥ । एकादशीव्रत उपलक्षणै है अर्थात साढ़े अट्ठाईस जे ब्रत हैं चौबीस एकादशी ओ रामनवमी, कृष्णाष्टमी, बामनदादशी, नरसिंहचतुर्दशी और आधाअनन्त । येजे वैष्णवीब्रतहैं तिनको नहीं जानै हैं अर्थात वैष्णवी उपासना नहींकरें औ मुंहते रामरामकहै हैं । औ भूत प्रेत यक्षिणी आदि ने उपासना तिनका करै हैं तामें प्रमाण॥ *अंतः शैवाबहि श्शाक्ताः सभामध्येच वैष्णवाः । नानारूपपधराः कौला विचरन्तिमहीतले' । सो रामनाम न कपूर है ताको छोड़िकै नाना पाखड मत जा विषयहैं ताको धारण कीन्हे ज्ञान गमायके मूर्खचारों ओर फिरै हैं ॥ ४ ॥ छीजैशाहु चोर प्रतिपालै सन्त जननकी कूटकरै। कहे कबीर जिह्वाके लंपट यहि विधि प्राणी नरकपरै॥३॥ | तेहिते शाहु जो आत्मा परमपुरुष पर श्रीरामचन्द्रको अंश सदाको दास या जीवको स्वरूपहैं सो जे ते छ।जैहैं । अर्थात् वह ज्ञान वाको भूलिजायहै । गुरुवनके बताये जेनाना पाखंडमत तेई चार तिनके प्रतिपाल कियो कहेसंग कियो तेईज्ञानको चोरायलेयहैं । औ जे साहबके ज्ञानके बतैया ने संत तिनहींकी कूट करै हैं कि, ये मुड़ियनको मत वेदशास्त्रके बहिरे हैं । सो कबीरजी कहै हैं ऐसे जिह्वाके लंपट प्राणी हैं ते नरकहीमें पैरै हैं ॥ ५ ॥ इति सत्रहवां शब्द समाप्त । अथ अठारहवां शब्द ॥ १८॥ | राम गुण न्यारो न्यारो न्यारो। अबुझा लोग कहाँलौं बूझ बूझनहार विचारो ॥ १ ॥ केते रामचन्द्र तपसीसों जिन यह जग विटमाया। केते कान्ह भये मुरलीधर तिनभी अंत न पाया ॥२॥