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बनायो नहीं बने हे के पासस जोलाही ज वके लोकको अव शब्द । (२२९) विनवो न कह्या विनवाइबो कह्यो सोबिना चैतन्य ब्रह्म औजीवके लपेटे याको बनायो नहीं बनै है काहेते कि, यह जड़है अर्थात् ब्रह्म जीवको संयोग करके बनवानको चली । ब्रह्मजीवके पास जोलाहा जो यह जीवहै सो वरको छोडेदेयहै अर्थात् यहशुद्ध जीवात्मा आपनो जो घरहै साहबके लोकको प्रकाश जहांशुद्ध रहै है तौनै घरको छांड़िकै, माया के लपेटमें परिके, आपने बंधनको आपने मन करिके संसाररूपी पटको बनावैहै ॥ १ ॥ गज नौ गज दश गज उनइसकी पुरिया एक तनाई। सात सूत नौ गाड़ बहत्तर पाट लागु अधिकाई ॥२॥ प्रथम एकगनकी कल्पनारूप पुरिया तनावत भई प्रथम जीव बाणी प्रणवरूप एक गजकी पुरिया अनुमान व्रह्म बनायो अर्थात् मन भयो । पुनि नौ गनकी पुरिया तनावत भई सो नवौ व्याकरण बनावत भई । अर्थव नवी व्याकरणमें शब्द ब्रह्मका वर्णन है सो शब्द बनावत भई । पुनि दश गज की पुरिया तनावत भई, सो चारवेद औ छः शास्त्र ई दशगजकी पुरिया तनावतभंयी सो अठारहौं पुराण उनीसौं महाभारत ये उनइ सगजुकी पुरिया बनावत भयो ॥ २ ॥ पुनि सात सूत कहे सप्तावरण १ पृथ्वी २ अप् ३ तेज ४ बायु ५ आकाश ६ अहंकार ७ महत्तत्त्व अथवा सात सूत १ जाग्रत् २ महानायव ३ बीजजाग्रत् ४ स्वप्नजाग्रत् ५ स्वप्न ५ सुषुप्ति ६ औ७ महासुषुप्ति ये सात अज्ञान भूमिका बनावतभयो पुनि नवगाड़ कहे नवदार बनावत भयो बहत्तर पटकहे बहत्तर कोठा अथवा बहत्तर हजारनस बनावत भयो ॥ २ ॥ ता पट तूल न गजन अमाई पसन सर अढ़ाई ।। तामें घटै बर्दै रतिवो नहिं कर कच कर घरहाई॥३॥ | तापट कहे तौन जो है शरीर संसाररूपी पट तामें जब अहब्रह्म भ्रमरूप तूलरह्यो तबतो गजमें नहीं अमातरह्यो कहे अप्रमेय रह्यो है । औ सेरकहे सिंहरूप रह्योहै संसारको नाशकै देनवारो रह्योहै । सो संसारी वैके जैसे सूतपैसा को अढ़ाईसेर बिकाय है तैसे यह जीवात्मा बिषयरूप पैसाको चाहिके अढ़ाई सेरद्वैगयो । एकै पृथ्वीको विषय सुख चाहै एकै यज्ञादिक करिकेस्वर्ग