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शब्द । (२२७) है मसकीन कुलीन कहावौ तुम योगी संन्यासी । ज्ञानी गुणी शूर कवि दाता ई मति काहु न नासी॥२॥ रामराकहे रकार जिनको मरा है अर्थात् रकार बीजको जिन को अभावहै, रामोपासक नहीं हैं, तिनकी संशयकी गांठिनहींछूटै है, तेहितेपकरिपकरिके यम रूटिलेइहैं अर्थात् याकामारिकै नरकमें डारिदेईं हैं । फिरिफिरि शरीर पावै है फिरिलुटि जायदै मारो जायदै ।। १ ॥ मकान कहे गरीब फकीर ढुकै कुलीन कहावै है कहे भये तो फकीर परन्तु कुलाभिमान नहीं छूटै है है हैं कि, हमफलाने मद्दीके मुरीद । सो तुम योग हौ संन्यासी हौ ज्ञानी है गुणी हौ शूर है। कविही दाताहैइत्यादिक जो भेदकी मति हैं सो कोई न नाशकियो काहेते कि, हे संतों ! ये परमपरपुरुष श्रीरामचन्द्रकै अंश हैं सा यह कोई नहीं जान है औ यह जगत् चित् अचित् बिग्रहकरिके साहबको रूपहै भेदकी, बुद्धि लगाइ राख्यो है ॥ २ ॥ स्मृति वेद पुराण पढे सव अनुभव भाव न दरशै। लोह हिरण्य होय धौ कैसे जो नहिं पारस परशै ॥३॥ स्मृति वेद पुराण सबै पढ़े हैं परंतु परमपरपुरुष बेश्रीरामचन्द्र सबके तात्पर्य तिनको अनुभव काहूको नहीं दरशै है । जो पारसको स्पर्श न होय तौ लोह हिरण्य कहे सोन कैसेहोय न होय । तैसे स्मृति वेदपुराणनको तात्पर्य श्रीरामचन्द्र तिनके चरणको जोलौं न परशै तैौं मुक्ति नहीं होयहै पार्षद रूपा - वाको प्राप्ति नहीं होयहै ॥ ३ ॥ जियत न तरै मुयेका तरिहौ जियतै जो न तरै। गहि परतीति कीन जिनजासों सेई तहैं मेरै ॥ ४॥ जो कछु कियो ज्ञान अज्ञानासोई समुझि सयाना ।। कहै कबीर तासों का कहिये देखत दृष्टि भुलाना ॥५॥ सो नियतमें जो न तुम तरोगे तौ मुये कैसे तरौगे । सो हे जीवो ! जियतै काहनहीं तरिजाउ है । जासों कहे जौने साहबसों जाके स्पर्शकिये जीव शुद्ध