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शब्द ।। ( २२९) भव किया तब गुरुवालोग बताया कि तुमही ब्रह्महौ, तुम्हारई जीवात्मा मालिकह सवको । राम सवको खाय लेयहै रामको का भजो रामती मायिकहै । जो कुछ उनकी श्रीरामचन्द्रमें वासनारही सोऊ छूटिगई । यही गुरुवाहै पक्षी वा रस नहीं पावै है तवखेद होइ है औ या वही ज्ञानमें दृढ़ता करिके उड़त उड़त नरकही में गिरै है नरकमें दुःख पावैहै ॥ २ ॥ कहा खजूर वढ़ाई तेरी फल कोई नहिंपावै । ग्रीषम ऋतु जब आय तलानी छाया काम न आवै॥३॥ अब धोखा ज्ञानवालेनको खजूरको दृष्टांतदैके कहै हैं । खजूरकी बड़ाई ले कहा कैरै फल तो कोई पावतै नहीं है । ग्रीष्मऋतु में छायाकाहूके काम नहीं अवैहै । वाके तरेही रहे है, आतप तपते रहै है। ऐसे हे गुरुवा लोगो ! तुम्हारी बड़ी बड़ाई कि, मैंही ब्रह्महौं, मोते बड़ो कोई नहीं है,आत्मै मालिक है। सो न कोई ब्रह्मै भया ना आत्मै मालिक भयो या फल कोई नहीं पायो । जो कोई तुम्हारे मत में अवै है उनको जनन मरणरूप ग्रीष्म तापनहीं छूटै है या तुम्हारो उपदेश रूप छाया काहूके काम नहीं आवै है ॥ ३ ॥ अपना चतुर औरको सिखवै कामिनि कनक सयानी । कहै कबीर सुनो हो सन्तो रामचरण रतिमानी ।। ४ ।। गुरुवालोग कनक कामिनीके मिलिबेको आप चतुर खैरहे हैं । कनक सुवर्ण कहावै है सो आत्मा को सुवर्ण जाहै स्वस्वरूप सो मायारूपी कामिनीमें लपट्योहै तेहिते शुद्धनहीं है । अथवा कनक जॉहै सुवर्ण सो शुद्ध है औ सुवर्णके जे भेद कुण्डलादिक भूषण तिनके भेद मिथ्याहैं । ऐसे और सबको मिथ्यामानिके एकब्रह्म हीको मानियो । औ कामिनीमें सयानी कहे ज्ञान करिकै विचारै हैं कि, कामिनी माया हई नहीं है, मिथ्या है । यही सयानी कहे ज्ञान आपऊ सिखै है औ औरहूको सिखावै है परन्तु जननमरण होतई जायहै माया नहीं छूटै है सो कबीरजी कहै हैं कि, हेसंता ! याहीते मैं ये बखेड़नको छोड़िके परमपरपुरुष जे श्रीरामचद्र हैं तिनके चरणनमें रतिमान्यो है । इहां संतनको १५