यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

शब्द । (२१९) वाको बारंबार मरेंगे । मरणको क्लेश क्षण में होइगा औ यातना शरीर लाखनवर्ष न छूटैगो या कथा गरुड़ पुराणादिक में प्रसिद्ध है ॥ ४ ॥ गाय वधै तेहि तुरुका कहिये उनते वैका छोटा । कहहि कवीर सुनो हो संतो कलिके ब्राह्मण खोटा॥५॥ जे गायको मारै हैं ते मुसल्मान कहावै हैं सो इनते वै को छोटे हैं । तुरुक गायमारै हैं अरु | भेड़ा भैंसा मारै हैं । आत्मातो सब एक ही है । सो कबीरजी कहै हैं कि, हेसंता ! कलिके ब्राह्मण बहुत खोट हैं काहे ते कि, जे शास्त्र को नहीं समझें तेतो मूढ़ही हैं, वे खोटकर्म करोई चाहैं परन्तु जे शास्त्रको समुझे हैं तिनहूँको समुझाइकै खोटकर्ममें लगाइ देइ हैं अपनी पाण्डित्यके बलते । ब्राह्मण जो कह्यो ताको या अर्थ है सबको यही समुझावै है को काको माँरै हैं सर्वत्रत एकई ब्रह्म है औ कोई या समुझावै है कि बलिदानदै देवीको प्रसन्नकरो तुमको ब्रह्मज्ञान है ब्रह्मबनाइ देइगी ॥ ५ ॥ इति ग्यारहवां शब्द समाप्त । अथ बारहवां शब्द ॥ १२ ॥ . संतो मतेमात जनरंगी । पीवत प्याला प्रेमसुधारस मतवाले सतसंगी ॥ १ ॥ अर्धऊर्ध्वलै भाठी रोपी ब्रह्म अगिनि उदगारी । । मूंदे मदन कर्म कटि कसमल संतत चुवे अगारी ॥ २॥ गोरख दत्त वशिष्ठ व्यासकबि नारद शुक मुनि जोरी ।। सभा बैठि शंभू सनकादिक तहँ फिरि अधर कटोरी ॥३॥ अंबरीष याग जनक जड़ शेष सहस मुख पाना ।। | कइँलों गनों अनंत कोटि लै अमहल महल दिवाना॥४॥