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(२१८) बीजक कबीरदास । हेसंतो ! पांड़े निपुण कसाई हैं काहेते कि, कसाई अबिधित मारै है वह विधते मारै है याते निपुण है। बकराको मारिके भैंसाकेः बलिदान दीबेको धावै है ॥ १ ॥ स्नान करके रक्तचंदनके बड़ेबड़े तिलक दैके बैठे है औ विधिसों देवाको पुनावै है अरु यह कहै है अंतर्यामी सर्वत्र है, औ बकरा मैं साको मूड़काटि डॉरै है, रुधिरकी नदी बहनलंगै है तबवह आतमरामजो है जीव ( कहे आत्माजो है शरीरतेहि बिषे है आरामनाको ) सो बिनशि जायेहै कहे शरीरते जुदा हैजाय है ॥ २ ॥ अति पुनीत ऊंचे कुल कुहिये सभा माहँ अधिकाई । इनते दीक्षा सव कोउ मांगै हँसि आवै मोहिं भाई ॥३॥ सो ऐसे ऐसे दुष्ट कसाइनको अति पुनात ऊंचे कुलके कहे हैं । अरुसभामें उनहको अधिकाई है कहे शास्त्रार्थ करिके सभामें आपनिन अधिकाई राखे है । तेहिते सब काई दीक्षामांगे हैं कि, हमको दीक्षादै संसारते उबारिलेउ । सो यह देखिकै मोको हँसी आवै है कि, आपई नरक में जाई है तौ और को नरकते कैसे उबार है अर्थात् तोहूंको वही नरकमें डारदेई है ॥ ३ ॥ पाप कटन को कथा सुनावै कर्म करावै नीचा ।। बूड़त दोउ परस्पर देखा गहे हाथ यम घींचा ॥ ४ ॥ | वोई गुरुवालोग पापकाटनको तो कथा सुनावै हैं रामायणादिक औ वहीं कथामें वर्णन है कि, रघुनाथजी शिकार खेले हैं । सो गुरुवालोग कहै हैं कि तुमहँशिकार खेलो । यहनहीं जानै हैं कि रघुनाथजी तिय्यंग्योनि वालेन परदया करी कि, ई ज्ञानभक्ति बैराग्यकैसे करेंगे याते मारिकै मुक्तिकरिदेइ हैं और हम इनको मारेंगे तो पाप ते हमई दोऊ नरकै जायँगे । याहीते दोऊगुरू चेलाकों परस्परनरक में बूड़त देख्यो है तिनको नरकमें डारिबेको यमघांचही धरै हैं । नरकमें डारिदेहिंगे तब नरकमें गुहमूत्र खाइगो औ मारो जाइगो । औ जो जीवनको मारिकै मांस खायो है तेई वाके मांस को खायेंगे। औ अपने २ सींगन ते खुनते मारेंगे । याते मांस खायो है वै जीवतही मांस खायेंगे । इहांते जो जीवन को वह मारयो तिनको क्षणइमात्रको क्लेश है औ उहां वे नीक