________________
{ २१६) बीजक कबीरदास । हिन्दू ब्रत एकादशि साथै दूध सिंघाड़ा सेती ।। अनको त्यागें मन नहिं हटकें पार न करें सगोती ॥२॥ तुरुक रोजा नमाज गुजारें विसमिल बाँग पुकारें। उनकी भिश्त कहते होइहै साँझै मुर्गीमारें ॥३॥ | हिन्दू जे हैं ते अन्नको त्यागिकै एकादशी व्रत साधै हैं कहे उपासे रहै हैं। औ फलाहार करै हैं । औ बिहान भये नानाप्रकारके व्यंजन बनाइकै सगे जे हैं। गोतीभाई तिनको लैकै पारण करै हैं औ मनको नहीं हटेकै हैं कहेदशौ इन्द्रिय ग्यारहों मनको नहीं हटेकै हैं अर्थात् यह एकादशी नहीं करै हैं । अथवा जैसे सगोतीमें कहे सगाई में अथान जैसे बिवाहमें जाफतमें खाय हैं तैसे पारण केरै हैं ॥२॥ औ मुसल्मान रोजा रहै हैं औ नमाज गुजारैहैं औ बिसमिल्लाको बांग दैकै पुकारें हैं औ सांझको मुर्गी मारिके पोलाव बनाइ खाय हैं सो कहोतो उनकी भिश्त कैसे होइगी ॥ ३ ॥ हिन्दू किं दया मेहर तुरुकनकी दूनों घट सों त्यागी । वे हलाल वे झटका मारै आगि दुनों घर लागी ॥४॥ | हिन्दूकी दया तुरुक्की महर है जो हिन्दू दया करत तौ यम ते छूटत अरु जो मुसल्मान मिहर करत ती यमते छूटत । सो ये दोऊ दया औ मिहरको आपने घटते त्यानि दिया है मुसल्मान कहैं हैं कि गलेकी रगसभी अल्लाह नगीचहै औ घट घट में मौजूदहै औ गला काटतई हैं सो गौ सेइकै गळा काटते हैं औ हिन्दू कहे हैं कि ब्रह्म सर्वत्र पूर्ण है औ झटका मारें हैं कहे मूड़ काटिडोरै हैं सोऊ ब्रह्म की ही गलाकाटै हैं या प्रकार ते कबीर जी कहै हैं कि दूनों घरमें आगिलगी है यह अज्ञानरूपी आग दूनों का बुद्धिको दोहे डॉरै है ॥ ४ ।।। हिंदू तुरुक कि एक राह है सतगुरु इहै बताई। कहहि कबीर सुनो हो संतो राम न कहौ खोदाई ॥ ५॥ हिन्दू मुसल्मानकी एकै राहहै राम न कह्यो खोदाई कह्यो खुदा न कह्यो राम कह्यो । नाम सब वही बादशाहके हैं सो वह बादशाहको हिन्दू तुरुककी