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शब्द । जीव ताहीको मालिक बतावै हैं । और चेला जे हैं तिनहूँ को मायाके चहलामें डॉहैं ऐसो न्याउ निवारेहैं । भाव यहहै कि, भैंसा यमकी असवारी है । यमही पुर को लैजाइगो । तहां जब यमके लट्ठा लगे तब गुरुवाई निकास आवैगी ॥ ४ ॥ | इति नवमशब्द समाप्त । अथ दशवांशव्द॥ १० ॥ ( मजहब ) सन्तो राह दुनों हम डीठा ।। हिन्दू तुरुक हटा नहिं मानें स्वाद सवनको मीठा ॥ १॥ | हिन्दू व्रत एकादश साधे दूध सिंघाड़ा सेती ।। अनको त्यागें मन नाहें हटकै पारन करे सगोती ॥२॥ तुरुक रोजा नमाज गुजरें विसमिल बाँग पुकारें ।। उनकी भिश्त कहते होइ है सांझै मुर्गी मारै ॥ ३ ॥ हिन्दूकि या मेहर तुरुकनकी दूनों घटस त्यागी ।। वै हलाल वै झटका मारै आगि दुनों घर लागी ॥ ४ ॥ हिन्दू तुरुक कि एक राहहै सद्गुरु इहै वताई।। कहहि कबीर सुन हो संतो राम न कहेउ खोदाई ॥५॥ संतो राह दुनों हम डीठा । हिन्दू तुरुक हटा नहिं मानें स्वाद सवन को मीठा ॥१॥ हे संतो! हम दूनोंकी राह डीठा कहे देखी दूनोंकी एकई राह है सो हमारो हटको कोई नहीं मानै है । हम सबको समुझावते हैं कि विषयनको छोड़िकै देखो तो दूनोंकी राह एकई है से दूनों दीनको विषयनको स्वाद मीठो लग्ये है यहीके मिलनकी उपाय करै हैं साहबको नहीं खोने हैं ॥ १ ॥