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शब्द। अथ नवमशब्द ॥ ९॥ संतो वोले ते जग मारे। अन वोलते कैसे वनिहै शब्दै कोइ न विचारै ॥ १ ॥ पहिले जन्म पूतको भयऊ बाप जनमियां पाछे।। वाप पूतकी एकै माया ई अचरज को काछे ॥२॥ उंदुर राजा टीका बैठे विषहर करै खवासी । श्वान वापुरा धनि ठाकुरोविल्ली घरमें दासी ॥ ३ ॥ कागज कार कारकुड़ आगे बैल कर पटवारी।। कहहि कवीर सुनी हो संतौ भैंसें न्याउ निवारी ॥४॥ संतो बोले ते जग मारे । अनबोलेते कैसे बनिः शब्दै कोइ न विचारै ॥ १ ॥ पहिले जन्म पूतको भयऊ बाप जनमिया पाछे। वाप पूतकी एकै माया ई अचरज को काछे ॥२॥ हे संतौ! जो बालौहौ कहे जो मैं बता ऊहीं सोतो मानै नहीं है बोलेते नगमारैहै कहे शास्त्रार्थ है ओ जो न बोलौ तो बनैकैसे शब्दको कोई नहीं बिचौरे ॥ १ ॥ अरु पहिले पूतन जीव है ताको जन्म द्वैलेइहै तब पिता जो है जीवको अनुमान ब्रह्म ताको जन्म होइहै । पिताजीवको काहेते कह्यो कि, जब शुद्ध नीव एकते अनेक ब्रह्मही दारभय है वह माया सबलित ब्रह्मपूर्तहै औ जीव मायाहींमें परये है दोनों माया सबलित सो बापजॉहै जीव औ पूतने है ब्रह्म तिनकी महतारी एक मायाही है अर्थात यहीते अनादिकालते दोनों प्रकट वहीमें पैरैहैं। सो तें बिचारु तौ यह अचरजको काछैहै अर्थात् तेंहीं अपने अज्ञानते यह अचरज काछे है औ नानारूप धरे है ॥ २ ॥