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शब्द । (२११) दश अवतार ईश्वरी मायाकर्ता कैजिनपूजा । कहहिं कवीर सुनौ हो सन्तौ उपजै खपै सो दूजा॥११॥ नारायणै माया करिकै अवतार लेइ है ते सव ईश्वरीमाया है कहे ईश्वर रूपहीमाया है तिनको निन पूजाकहे रामचन्द्र मानि के न पूजो वैसेपून तो पूंजो ईश्वरमानिकै न पूनः। सो कबीरजी कहै हैं कि हेसतौ! जो उपजै हैं औखरै हैं सो साहवते दूजो पुरुष हैं; वे उद्धारकर्ता परम परपुरुष श्रीरामचन्द्र साकेत ते कवहूं नहीं आवै जाय हैं तामें प्रमाण ।। ( पूर्णः पूर्णतमः श्रीमान्सच्चिदानन्दविग्रहः । अयोध्यांकापिसंत्यज्यसकाचिन्नैवगच्छति ॥ इतिवशिष्ठसंहिता याम् ।। साकेतेनियमाधुय्यैधाम्निस्वराजतेसदा । शिवसंहितायाम् ) ॥ जो कहा इनहूको तै कौन्यो कल्प में अवतारलिख्यो है सोई कबहूँ आवै जाय नहीं है। साकेतही में वनरहै हैं । जब कबहूँ वाणयुकी इच्छा चलै है तब यह अयोध्या साकेतई प्रकटहाइ है । अरु उहांके सब परिकार जमके तस प्रकटहोइ हैं। यह ब्राह्मण्डमें तहां जैसे साकेतमें विहारकरै हैं तैसे विहार करै हैं । याही हेतुते ज्ञान अज्ञानी जड़ चेतनकीटपतंगादिको मुक्ति करिदियो साश्रुतिमॅलिखे ॥ (ऋतेज्ञानानमुक्तिः ) विनाज्ञानमुक्ति नहींहोइ है से जोवह साकेतकेशव न होते तो मुक्ति कैसे हाती । जो कहो यह ब्रह्माण्ड वह साकेतई द्वै गयो तै साकेतको आइबा तौ आयौ तौ सुनौ वह साकेत औ यह अयोध्या एकई है, इहां साकेत आबै जाय नहीं है। जैसे साहव सर्वत्रर्ण हैं, तेसे साकेत तो साहबके रूपई है सो वहो सबंत्रपूर्ण है ( अयोध्याचपरब्रह्म ) इत्यादिक प्रमाणते । जब परमपर पुरुष श्रीरामचन्द्र को प्रकट बिहार करनको होइहै तब प्रकटदै जाइहैं है जब गुप्तविहार करनको होइहै तब गुप्त वैजाइ हैं । तब साकेत जाप्रकट औ गुप्त लैजाइहै कैसे ? जैसे श्रीकबीरनीको जब प्रकट उपदेश करनकी इच्छाहोईहै तब प्रकटहोइ उपदेशकरै हैं, औ सब कोई देखैहैं । औ जब गुप्त उपदेश करन होइहै। तब गुप्त उपदेशक हैं । जाको उपदेशकरै हैं सोई जानैहै। वे साकेत निवासी श्रीरामचंद्र जैसे सर्वत्रपूर्ण हैं तैसे उनको लोकऊ सर्वत्रपूर्ण है । नोकहो उनके नामादिक तौ अनिर्वचनीय हैं वे कैसे प्रकट बचन में आगे तो, नारायण ने रामावतार लेइ हैं तेई हैं तिनके नामादिक तिनते उनके नामादिक ब्यजित