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(२१०) बीजक कबीरदास । रघु जवको कहै हैं ते रवुशब्दकै ( व्युत्पत्तीरंवतेलाकाल्लोकांतरं गच्छति रघवजीवास्तेषांनाथः ) अर्थ लोकते और लोक जाय ते जीवरघु हैं तिनके नाथजे हैं तेई र चुनाथ हैं ॥ ७ ॥ गोपी ग्वाल गोकुल नहिं आये करते कंस न मारा। है मेहरवान सवनको साहब नहिं जीता नाहं हारा ॥ ८ ॥ औ गोपी ग्वाल गोकुल में कबहूँ नहीं आये हैं वे उद्धारकर्त्त साहब कंसको करते नहीं मारया औ न मथुरागये काहेते कि ब्रह्म वैवर्त में लिखा है। (वृन्दावनंपरित्यज्यादमेकंनगच्छति ) ॥ वे साहब तो सबके ऊपर मेहरबानी करनवारे हैं वे न काहू सों जीते हैं न हरै हैं न काहूका मारै हैं अर्थ, युदई नहीं किया वेतौ रासई करत रहे हैं ॥ ८ ॥ वे कत नाहिं बौद्ध कहावें नहीं असुरको मारा। ज्ञानहीन कर्ता भरमे माया जग संहारा ॥ ९॥ वेकर्ता नहिं भये कलकी नहीं कलिंगहि मारा ।। ई छल बल सव मायै कीन्हा यतिन सतिन सव टारा १० अरु बैद्धरूप वेंकै दैत्यनको नास्तिक मतसिखै दैत्यनको संहार कराइ डायो है सो सब माया किया है वे मुक्तिकर्ता साहब नहीं कियो । काहेते कि वे मुक्तिक साहव देवको निन्दा करिकै इनको अज्ञानी कैसे करेंगे । सो ज्ञानहीन ने हैं भर्मे, ते यह कहै हैं कि, यह सब उद्धार कर्ता जो है सोई सव करै है सो कत्त नहीं करै है यहमाया सब जगत्को संहारकरै है ॥ ९॥ अरु वे उद्धारकर्ता परम परपुरुष श्रीरामचन्द्र कलकी अवतार नहीलियो औ न कलिंग देशी जे म्लेक्ष हैं तिनके मारया है यह छलबल सबमायै कियो है। यतिनको जेा है सत्य सवताको टारिदिया है अर्थात् यती जे रहे संन्यासी गोरखादिक तिनकर सत्य ज है साहबको जाननवारो मत तौनेको टारिदियों योगादिकनमें लगाइदिको ॥ १० ॥