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( २०६ ) बीजक कबीरदास । ई सव काम साहबके नाहीं झूठ कहै संसारा ॥३॥ खंभ फारि जो बाहर होई ताहि पतिज सवकोई ।। हिरणाकुश नख उदर विदारे सो नहिं कर्ता होई ॥४॥ वावन रूप न बलिको यांचे जो यांचे सो माया । विना विवेक सकल जग जहड़े माया जग भरमाया ॥५॥ परशुराम क्षत्री नाहं मारा ई छल माया कीन्हा । सतगुरु भक्ति भेद नहिं जानै जीव अमिथ्या दीन्हा॥६॥ सिरजनहार न व्याही सीता जल पषाण नहिं बंधा ।। वे रघुनाथ एककै सुमिरे जो सुमिरै सो अंधा ॥ ७ ॥ गोपी ग्वाल गोकुल नहिं आये करते कंस न मारा। है मिहरबान सवनका साहव नाहं जीता नहिं हारा ॥८॥ | वे कर्ता नहिं बौद्धकहावें नहीं असुरको मारा। ज्ञान हीन कर्ता कै भरमें माया जग संहारा ॥९॥ | वे कर्ता नहिं भये कलंकी नहीं कलिंगहि मारा। - ई छल बल मायै कीन्हा यतिन सतिन सव टारा ॥ १० ॥ दश अवतार ईश्वरी माया कत्तकै जिन पूजा । कहै कबीर सुनो हो संतौ उपजै खपै सो दूजा ॥ ११ ॥ अवतार विचार ।। अबतक सबके गुरुश्रेष्ठ परम परपुरुष श्रीरामचन्द्रको वर्णन करिआये तिनके द्वार में नारायणादिक मत्स्यादिक रहेआवैहैं ते अमायिक काहेते कि अवै जायनहीं हैं तिनहीको परात्पर ब्रह्म करिकै वर्णतहैं तामें प्रमाण ॥ ( पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदुच्यते । पूर्णस्यपूर्णमादायपूर्णमेवावशिष्यते इतिश्रुतेः) ॥ १ औ ई माया ते परे हैं औ बहुधा निरंजनादिक ने नारायणहैं जिनके पांच