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(२०१) | यह जीव शरीर धरयो तब एकै नारी जो बाणा सो नानाप्रकार की नो है। कल्पना सोई है जाल ताका पसारि देत भई । तब जगमें नाना प्रकारको अंदेशा होत भयो कहे नानाप्रकारके मतन करिकै जगत्के कारणको खोजतभये परन्तु ब्रह्मा विष्णु महेश हू भी अन्त न पावतभये; थकिकै नेतिनेतित कहि दियो आत्माको विचार न कियो कि कौनकॉहै ॥ ३ ॥ नागफाँस लीन्हे घट भीतर मूसि सकल जग खाई। ज्ञान खड्ग विन सजग जूझै पकरि काहु नहिंपाई४॥ से ये कैसे अन्त पावै नागफांस कहे त्रिगुणकी फांसी लिये घटके भीतर माया बनीरहै है साई सब संसारको मूसिकै खाई लेइहै । मूसिकै खाई जा कह्य सो वैतौ नाना मतनमें परे यहजानै हैं कि, यही सत्य है परन्तु माया जो है सो परमपुरुषको जानिबो मूस लियो कहे चोराइलियो । परमपुरुष ने श्रीरामचन्द्र तिनको औ अपने आत्माको जानिबो कि, साहबको मैं औ मायादिकनं को मिथ्या मानिबो यह जो ज्ञानखङ्ग है ताके बिना सब जग जूझ जाईहै । वह मायाको कोई पकरि न पायो अर्थात् यथार्थ मायाही कोई न जान्यो, तव साहबको अपनो स्वरूप को जानै ॥ ४ ॥ आपुहि मूल फूल फुलवारी आपुहि चुनि चुनिखाई। . कहहि कवीर तेई जन उवरे ज्यहि गुरु लियो जगाई॥५॥ आपहि वह मायामूल अविद्याद्वै जगत्के नानापदार्थ करत भई कहे कारण अविद्याभई। औ आपहीफुलवारी कहे कार्य अविद्या हुँकै जगत्के नानापदार्थ भई औ आपही कालरूपलैके चुनि चुनि खाइहै । सो कबीरजीकहै हैं स्वप्न जा माया तनेते जगाय साहब को बताइदियो है जाको सद्गुरु तेई जन उबरे हैं । ?-नाग फांस कहिये वाणीको क्यों कि जैसे नागका दे जिह्वा होती है वैसे ही वाणी के दो अर्थ होते हैं संसार मुख अयं स नरक में पड़ता है और गुरुमुख अर्थसे मक्ष पद को प्राप्त होता है ! २ क्या ।