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शब्द ।। (२०१) एकही हैं । आपसमें लड़िलाड़िकै मरिगये मर्म कोई न जानतभये की जो है। राम है, वहीं रहिमान है । साहब एकई है, दूसरो नहीं है सब नाम कारको हैं तामें प्रमाण ॥ “सर्वाणिनामानियमाविशंतिइतिश्रुतिः सो ॥ सब नतवाहीमें घटित होयहैं ॥ ६ ॥ घरघर मंत्र जे देत फिरतहैं महिमाके अभिमाना। गुरुवा सहित शिष्य सव कूड़े अन्त काल पछिताना ७॥ घरघर जे मंत्र देतफिरतहैं अपनी महिमाके अभिमानते कि, हम सिद्ध हैं। योगी हैं पीरहैं औलिया हैं ऐसेने गुरुवा हैं । ते यही अभिमानते सबकी रक्षा करनवारे जे परमपुरुष श्रीरामचन्द्र हैं तिनको भुलाइकै, सबै जीवनको और औरं में लगाइ देइ६ औ कहै हैं कि, हम उद्धारकै देइहैं । गुरुवा सहित सब शिष्य बुड़िनाइँगे औ जब यमकेर मोंगरा लगैगो तब पछितायगो कि, हमपरम पुरुष श्रीरामचन्द्रको भजन न किये जे सबके रक्षक हैं ॥ ७ ॥ | कहहि कवीर सुनोहो संतो ई सबभर्म भुलाना ॥ केतिक कहीं कहा नहिं मानै आपहि आप समाना॥८॥ सो कबीरजी कहै हैं कि, हे संतो तुम सुनो ये सब भर्मईमें भुलान रहै हैं मैं चारौ युगमें केतनौ समुझाऊंहीं पै मानै नहीं हैं। यद्यपि माया ब्रह्मकी एती सामर्थ्य नहीं है कि, यह जीवको धरिलैजाय काहेते कि, वह जीवहीको अनुमानहै । सो यह आपनेनते आप यही भर्ममें समाइगयो है कि, मैं ब्रह्महौं । आप आपहीते यह माया ब्रह्मसे आपस मानलियो है अर्थात् संगति कैलियो है तेहिते संसारी द्वै गयो ॥ ८ ॥ इति चौथाशब्द समाप्त। । १ इस चरणका पाठ दाना पुरकी पंक्तिमें ऐसा है । "कैतिक कह कहा नहि मानै सहजे सहज समाना