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( १९८) बीजक कबीरदास । । बहुते पार औलियनको देखे किताब कुरानके पढ़नवाले ते जीवनकों मुरीद कहे शिष्य करिकै मुरगी बकरीके हळालकरै कि तदबीर बताबें हैं औ आप हाल करै हैं ॥ ३ ॥ आसनमारि डिंभ धार वैठे उनमें बहुत गुमाना। | पीतर पाथर पूजन लागे तीरथ गर्व भुलाना ॥४॥ औ कोई चौरासी आसन कैकै प्राण चढ़ायकै डिंभधरि बैठे हैं कि, हमारे बरोबार कोई सिद्ध नहीं है यही मनमें गुमान करै हैं । यह योगिनको कह्यो। ॐ कोई पतरकी मुर्ति कोई पाथरकी मुर्तिपूनै हैं औ सर्व भूतमें व्यापक जो भगवान् तिन भूतनको दोहकरै हैं ते अज्ञानी हैं साहबको नहीं जाने हैं । तामें प्रमाण ॥ * अहमुच्चा वचैर्देव्यैः क्रिययोत्पन्नयानघे ॥ नैवतुष्येऽर्चिवोच्चयां भूतग्रामावमानिनः ॥ १॥ यस्यात्मबुद्धिः कुणपत्रिधातुके स्वधीः कलत्रादिषुभौम इज्यधीः ॥ यत्तीर्थबुद्धिः सलिलेनकहिँचिज्जनेष्वभिशेपुसएक्गो खरइतिभागवते ॥ " है कोई तीर्थनमें लागै है । सो इनहीके गर्व में सब भुलाने हैं। कि, हम मुक्त है जायँगे ॥ ४ ॥ माला पहिरे टोपी दीन्हे छाप तिलक अनुमाना। | साखी शब्दै गावत भूले आतम खवार न जाना ॥५॥ अब कबीरपंथिनको नानापंथिनको कहै हैं कि, माला पहिरे हैं टोपी दोन्हें । हैं औ नाकतेलैकै अछिद्र ऊध्र्व तिलक दीन्हे हैं ताहीके अनुसार छाप पाये हैं। या कहै हैं हमको गद्दीकी छाप भई है हम महन्त हैं पान पायोंहै औ साखी शब्द गावत पै वाको अर्थ भूले हैं साखी शब्दमें जो साहबको रूप बतावै। जीवात्माको सो नहीं जानै ॥ ५ ॥ हिंदू कहै मोहिं राम पियारा तुरुक कहे रहिमाना। आपसमें दोउ लरि लार मूये मर्म कोइ नहिं जाना६॥ सो हिन्दूतो कहैहैं कि, वेद शास्त्रमें रामही पियारा है औ मुसल्मान कहैहैं कि, रहिमानही पियाराहै । यहद्विविधा लगायराख्यो है या न जानतभये कि,