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शब्द।। | ( १९७) कहै कबीर सुने होसंतो ई सव भर्म भुलाना । केतिक कहीं कहा नहिं मानै आपहि आप समाना ॥८॥ सन्तो देखत जग बौराना। सच कहौं तौ मारन धावे झूठे जग पतियाना ॥ १॥ | हे संतो ! यह जगत् देखत देख बौराई गया । यह जानै है कि, यह कल्पना मनहीकी हैं। एकनको दुःखपावत देखे है, एकनको भूतहोतदेखे है, एकनको रोगग्रसित देखै है, एकनको घोड़े हाथी चढ़े देखै है, एकनको राजा होतदेखै है है एकनको मरतदेखे है । आपहू मरघट ज्ञान कथै है कि, ऐसे ही हमहूँ मरिजाइँगे । सो यह देखत देखतहू भुलाइ जाईंहैं । परम परपुरुष ज श्रीरामचन्द्र हैं तिनको भजन नहीं करै है, जाते संसारते छूटै । जो साँचबताऊ हौं कि, सांच जे परम पर पुरुष श्रीरामचन्द्रहैं, जो चित् अचिवमें व्यापक हैं, सूत्र और बने हैं, तिनमें लग जाते उबार है तो मारन धावै है । है झूठे जे माया ब्रह्म हैं तिनके विस्तारके जे नाना मत हैं तिनमें जो कोई लगाव है। तौ तिनको सच मानिकै पतियात जाय ह ॥ १ ॥ नमी देखे धम्म देखे प्रात कहिं असनाना । आतम मारि पषाणार्ह पूजें उनमें कछू न ज्ञाना ॥२॥ | बहुत नेमी धर्मी देखे हैं, बहुत प्रातःस्नान करनवालेनको देखे हैं, स्वर्ग को जाय हैं । औ आत्माको मारकै कहे भगवान्को मंदिर शरीरमें साक्षात सबके हृदयमें भगवान् अंतर्यामी रूपते बसे हैं, तैौने शरीरको फोरिकै, मेढ़ा महिषादिकनको मूड़लैके, पीतर पाशर आदिक ने देवीकी मूर्ति हैं तिनमें चढ़ावै हैं । औ सबके उद्धार वैबेको बतावै हैं, तो इनमें कौन ज्ञान है ? कछु ज्ञान नहीं है काहेते कि साहबको सर्वत्र नहीं जाने हैं ॥ २ ॥ बहुतक देखे पीर औलिया पढ़े किताब कुराना। कार मुरीद तदबीर बतावें उनमें यहै जो ज्ञाना ।। ३॥