शब्द । ( १९३) साहवका रूप सब संसार याको सूझिपरै औसाहबके रूपते बाहिरे औकुछ वस्तु न सूझिपरै । सुतिरूपी जो बाण है सो जगतमुख ब्रह्ममुख ईश्वरमुख जीवात्मामुख है रहाहै सो उलटा कहे उलटिकै पार्थिवकह राजा ने परम- पुरुच श्रीरामचन्द्र तिनमें लगावै । यहबात जो कोई शूरा होइ कहे ब्रह्मज्ञा- न ईश्वरज्ञान जीवात्मज्ञान की एक आत्मै सत्य है तिनको जीति लेइ सो बूझै तबहीं जन्ममरण याको छूटे है ॥ ५ ॥ गायन कहै कबहुं नहिं गावै अनवाला नितगावै ॥ नटवर वाजी पेखनी पेखे अनहद हेतु बढ़ावै ॥ ६॥ गायन जॉहै वाणी वेदशास्त्र पुराण सो तात्पर्य कारकै अनिर्वचनीय साहबको कहे हैं तीनेको तौ कवहूं नहीं गावैहै और अनबोला जो निराकार धोखा ब्रह्महै. जो कबहूं बोलते नहीं है, सो कैसे पूरपरै । कौनीतरहते अनबोलाको गावै हैं सो आगे कहै हैं । वह जो धोखा ब्रह्मको देखनाहै सो नटवत् बाजा है कहे झूठे है। उहां कछु नहीं देखि परे है जो कहो अनहदको हेतु तो बढ़ावहै कहे दशधुनि अनहद की तौ सुनि परे है ॥ ६ ॥ कथनीवनी निजुकै जोहै ई सब अकथ कहानी ॥ धरती उलटि अकाशहि वेधे ई पुरुषहिकी वानी ।। ७॥ सोई तो सब कुथनी बदनीहै । जो बिचारिकै देखौ तौ अनहद आदिदैके। ई सव अकथ कहानी हैं। साहबके जाननवारे पूरसंतनके कहिवे लायक नहीं है, झूठ कछु इनमें है नहीं । सबमनके अनुभवहैं । पुरुषलेहैं तिनकी यह बानीकहे स्वभावहै । धरती जो जड़मायाहै ताको उलटिदेइहै, बाको मुख मुरकाई देइहै। वासों आप फिरि विहे । औ आकाश जोब्रह्महै ताको बेधैकहे ब्रह्मके पार जाय है ताम प्रमाण ॥ ‘सिद्धाब्रह्मसुखेमा दैत्याश्चहरिणाहताः । तज्जोतिर्भेदनेश- कारसिकाहरिवदिनः ॥ ' औकुपुरुषले हैं ते संसार में लगे हैं कि, धोखाव्रह्ममें- लगैहैं उनकी बानीकहे यहै स्वभावहै ॥ ७ ॥ विना पियाला अमृत अचवै नदी नीर भार रावै ।। कहै कबीर सो युगयुग जीवै राम सुधा रस चाडै ।। ८॥
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