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शब्द। जो कहो “मनको बिषय ब्रह्म है यह तो कोई वेदांतमें नहीं है तो जहां भर मन वचनमें आवै तहांभर अज्ञान कल्पितहै । और ‘‘अहंब्रह्मास्मि' (मैं ब्रह्महौं) मानिबो तो मूलाज्ञानमें है । यह वेदांतको सिद्धांतहै जैसे, धूरि धूम बादर घटादि कके आकाशही रहजायहै । कबीरजी कहे हैं कि, तैसे तीनों अवस्थामें तुमही रहिजाउहौ । जहांभर ब्रह्म कहैं औ विचारकहैं सोमन वचनमें आइ• जाइहै ताते, मनही को कल्पित है; ताते वोऊजड़हैं, सो तुम नहींहो । तुमतौ चैतन्यहौ । तिहारेरूपको कालनहीं खाय है । औ कौनौ कल्पना नहीं व्योपै है। अर्थात् कौनौ तुम्हारे स्वरूप में कल्पना नहीं उठै है । औ तेरो जोस्वरूप याते परमपुरुष श्रीरामचन्द्रके समीप रहै है । सो रूप जरा जो बुढ़ाई है ताते नहीं छीनै है अर्थात कवहूं वुढाई नहीं होइहै सदा किशोर बनोरहै है ॥ १ ॥ उलटी गंग समुद्रहि सोखै शशि औ सूर गरासै ॥ नवग्रहमारि रोगिया बैंठे जलमें बिम्ब प्रकासै ॥ २॥ | रागरूपी जाहै गङ्गा सो संसारमुख ब्रह्ममुख हैरहीहै । सो जो उलटै साह- बमुख होइ साहबमें जीव अनुरागकरे तो समुद्र नोहै संसारसागर औधोखा ब्रह्मसागर ये दुहुनको सोखिलेइ । औ शशि जो है जीवात्मा मानियो कि एक आत्मही है, दूसरो पदार्थ नहीं है यहज्ञान; औ सूर जो है नाना निरंजनादिक ईश्वरनके दास मानिबेको ज्ञान; तौनेको गरासिलेइहै । औ यहांचो साहब को है जान योको देइहैं संसारवालो जो रोगहै से पारखहीते जायहै । सो नव- ग्रह जब निबल होइहै तब रोगहोइहै । सो नवग्रह नवव्यहैं । नवद्रव्यके नाम १ पृथ्वी २ अर् ३ ते ४ वायु ५ आकाश ६ काल ७ आत्मादिक ८ दिशा ९ मन तिनकोमारकै कहे मिथ्या मानिकै औ अपनी आत्माको साहब को दास मानिकबैठे, तब रागरूपी जलमें बिंब जो है शुद्ध साहब को अंश याको स्वरूप, जाको प्रतिबिंब धोखा ब्रह्महै औ संसारहै तीन प्रकाशै कहे अपने स्वस्वरूपको जानै ॥ २ ॥ | दिन चरणनको दशदिशि धावै विन लोचन जग सूझै॥ ससा सो उलटि सिंहको ग्रासै ई अचरज कोऊ बूझे ॥३॥