(१८८ } बीजक कबीरदास । सो या भांति साहवकी जे सातौभक्ति ते गुप्तद्वै गई काहेते कोऊ न जानत- भयो से कहै हैं नारी जेहै कारणरूपा माया सदैपुरुषको प्रकटकियो एकजीव दूसरो ईश्वर से पांच ब्रह्मईश्वर प्रकट भयेहैं सो आदि मंगलमें कहियेहैं। जनप्रादुर्भावे धातुहै या जायोको अर्थ प्रकटकरबोई है औ मायाते जीव ईश्वर प्रकटभये हैं तामें प्रमाण ॥ ( मायाख्यायाःकाभधनोवत्सोजीवेश्वरावुभावित जीवेशावाभासेनकरोति मायाचाविद्याचेतिश्रुतेः ) ॥ सो हे पण्डित ज्ञानी ! तुम बूझौ तौ सारासारके विचार करनवारे सांचहौ यहवाणी जो है सोई तुम को भरमाइ दियो है ॥ १ ॥ पाहनफोरिगंगयकनिकरी, चहुँदिशिपानी पानी । तेहि पानी दुइपर्वत बूड़े, दरिया लहरि समानी ॥२॥ पाहन कहिये कठिनको सो कठिन मनहै ताको फोरिकै गंगा निकसी नाना पदार्थनमें जो राग होइ है सोई गंगाहै सो वही रागरूपा मायामें परिकै जीव संसारमें रागकरि बूडिगये। औ ईश्वर उत्पत्ति प्रलय करिकै दोनों जीव ईश्वर ने हैं तेई दुइभारी पर्वत हैं ते बूड़िगय। ॐ दरिया जो धोखा ब्रह्महै तामें रागरूपी जो है गंगा ताकी जो लहरि है सो समाई जातीभई अर्थात् सब धोखहीमें राग करत भये, सांच बस्तुमें जिनजाना तेई बाचे अथवा वही रागगंगा लहरि संसा- रसागरमें समाइजाती भई । सजीव ईश्वर संसार में रागद्वेषकरिकै बूड़िगये । अथवा वहै जो बाणीगंगा सो पाहन जो मनहै तौनेको फोरिकै निकरी हैं सो चारिउ ओर पानीपानी & रही है तौने पानी दुइ पर्बत बूडे एक जीव एक ईश्वर औ गङ्गा समुद्रमें समानी हैं इहां बाणीरूप गङ्गाको पर्यवसान दरिया जो ब्रह्महै ताही में होतभयो ॥ २ ॥ उड़ि मक्खी तरुवर को लागी, बोलै एकै बानी। वहि मक्खी के मक्खा नाहीं, गर्भरहा विनपानी ॥३॥ मक्खीजे हैं जीव ते तरुवर जो है देह तामें उड़िके आपने अपने बासननते लागतभये अर्थात् प्रलय जबभई तबभई तब वही ब्रह्ममें लीनभये, पुनि नबसृष्टिभई तब पुनि शरीर पावत भये ॥ अथवा मक्खी जे जीव ते संसार
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