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(१८४) बीजक कबीरदास । आपनको औरै औरै देवताके दास मानै है यहनामामटाइदेइऔ यह जीबका जीव नामामटाइदेइ औ हंसरूप में स्थितकै जीवको नाम रामदास धरावै तबहीं यहनावको प्रतिपाळ होइहै आपने देखते जन्म मरणको लैहे कहे छोडिदेई है ॥४॥ सो जो कोई या भांति साधन करै सो हालै निशानेमें घाउकरै अर्थात् मनोनाश बासक्षय हालै लै जाइहै औ जेमनमतराउह अपने मनमतमें अपनेको राजामाने हैं जूझिकै संसारमें परे अर्थात् कोई आपनेनको ब्रह्ममानै है कोई आमैको मालिकमौनँदै ते जैसे मिथ्या वासुदेव अपनेको कृष्णमानि जुझिपरयो ऐसे येऊ मनमाया करिके मारे जाय हैं ॥ ५ ॥ साखी ॥ मनमतमरैनजीवई, जीवहिमरण न होय ॥ शून्यसनेहीरामविन, चलेअपनपौखोय ॥ ६॥ मनमती न मरै है न नियै है काहेते नीवहि मरण न होय जीवको जीवत्वनहीं नाइ है जिअब तो तब कहिये जब साहबको जानिकै साहबके लोकहि में जन्म मरण छूट जाय मरिबो तब कहिये जब ब्रह्ममें लीनहोय जीवत्व छुटिजाई जनन मरण न होइ सो शून्य जे हैं वे धोखा तिनके सनेही जे मनमती हैं तेरै हैं न निये हैं जीवको तत्व नहीं जाइ है जीव सनातनको है तामें प्रमाण ॥ ( ममैवांशोनीवलोकेजीवभूतः सनातनः ) ॥ ६ ॥ इति तिरासिवीं रमैनी समाप्ता ।। चौपाई । अथ चौरासिवीं रमैनी । जोजिय अपनेदुखै सँभारू।सोदुःखव्यापिरहसंसारू॥१॥ माया मोह वैध सव लोई । अल्पै लाभ मूलगो खोई॥२॥ | मोर तोर में सवै विगूता । जननीउदर गर्भमहँसूता ॥ ३॥ ई वहुरूप खेलै वहु बूता । जनभैंरा असगये बहूता ॥४॥ उपजैखपै योनिफिरि आवै।सुखक लेशसपनेहुँनहिंपावै॥६॥