( १८०) बीजक कबीरदास । विचारहै नेति नेति हैहै याते सब खोटही वैगया ॥ ३ ॥ श्रीकबीरजी कहै हैं। सांचो जो है साहव रक्षकताको न जान्यो झिनकहे झीन आशा जो है कि हमव्रह्म है जायँ तौनेको तोर ब्रह्ममें लीनहोउगे फिर संसार परोगे तब काको खोरी देहुगा तुमहीं ब्रह्महै। ॥ ४ ॥ | इति असिवीं रमैनी समाप्ता । अथ इक्यासिवीं रमैनी । चौपाई। देवचरित्र सुनौ रे भाई । सो तो ब्रह्मा धिया नशाई ॥१॥ ऊजेसुनी मंदोदार ताराज्यहिवर जेठ सदा लगवारा॥२॥ सुरपतिजाइअहल्यहिछलिया। सुरगुरुघराणचंद्रमाहरिया३ कह कबीर हरिके गुणगाया। कुंतीकर्ण कुंवारेहि जाया ४ देवचरित्र सुनौरे भाई । सोतो ब्रह्माधिया नशाई ॥ १॥ ऊजेसुनीमंदोदार तारा। ज्यहिघर जेठसदा लगवारा ॥२॥ बड़ेबड़े जीव मायामें परिकै भूलिगये हैं छोटे जीवनको कहा कहिये हे भाइ देवचारित्र सुनौ ब्रह्मा अपना कन्यासंग भूलि गये ॥ १ ॥ ऊजे मन्दोदरी ताराजे तिनके घरमैजेठही लगवारहोत आयोहै जो कहो सुग्रीव बिभीषणको कहतेहौ तौ तिनके घर न कहते तिनके कहते औ ई लहुरे हैं वेजेठकै है हैं सो ब्रह्माके हवाले कह्यो ब्रह्माके पुत्र आपुसैमें काज करतभये सो पुलस्त्य जेठे हैं। ते लहुरे भाईकी कन्याको विवाहे या मन्दोदरीके घरको हवाल भयो औ ऋक्षराजस्वी भये तिन्हैं सूर्य औ इन्द्रगहे तिनते सुग्रीव औ वालिभये सो प्रथम सूर्य ग्रहण कीन्हो सो उनकी स्त्री भई औ सूर्यते जेठेइन्द्रहैं तेऊपीछे ग्रहणकियों ताराके घरको हवाल भयो से तारा मन्दोदरीके घर जेठही लगवार होत आयों है जो लहुर पाठहोइ तौ सुग्रीव बिभीषण बने हैं सो यहां नहीं है ॥ २ ॥
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