(१७८) बीजक कबीरदास । अथ उन्नासिवीं रमैनी। | चौपाई ।। वढ़वतवाढ़ि घटावत छोटी । परखतखर परखावतखोटी १ केतिक कहाँ कहाँलों कही । औरो कहौं परै जो सही॥२॥ कहे विनामोहिं रहो न जाई। बेहि लैलै कुकुर खाई ॥ ३॥ साखी ॥ खातै खातै युगगया, अजहुं न चेतो जाय ॥ | कहाहिं कवीर पुकारि कै, जीव अचेतै जाय॥४॥ बढ़वतवाढ़िघटावतछोटीपरखतखरपरखावतखोटी ॥१॥ केतिककहाँ कहाँलों कही। औरौ कहीं परै जो सही ॥२॥ कहे विना मोहिं रहो न जाई । वेरहिलैलै कुकुरवाई ॥३॥ | यह माया को प्रपंच जोहै सो बढ़ावत जाइते बढ़तई जाय है रंकते इंद्रहू द्वैजय तऊ चाह बढ़तई जाये। औ जो वटावैलगे तो घटिही जाइहै औ नाना- मतमें लगि मनमुखी बिचौहै तब तो खर कहे सांचैहै औ जब काहू साधुते परवायो तब झूठह&ि जाय ॥ १ ॥ औमैं केतिका बातकह्यो परन्तु पाथरकै- सो पानी बहि जाइहै बेधै तौ हईनहीं है मैं कहांलों कहों औ औरऊ कहों जो सहीपरै कहे जो तोको सांच जानिपरै ॥२॥ हे जीव!तेरे ये दुःखदेखिकै मोको दयाहोइहै ताते बिनाकहे मोसों नहीं रहिजाइहै जौने बेरा रामनाम संसार सागर- के उतरिवे को मैं बताइदेउहैं। तौने बेराको कुकुर जे तामस शास्त्रवारे गुरुवालोग ते खाई जाइहै कहे मेरोकहो तामें नहीं लगन देइहैं औरे और मतमें लगाई। देईहैं जो यहपाठ होई ‘बिरहिनि लैलैकुकुर खाइ तौ यह अर्थ है कि बिरहिन जेलोगहैं जिनको साहबकी अप्राप्ति है तिनको गुरुवालोग खाइ जाइहैं अथवा वीर जे साहब तिनते हीनजे प्राणी हैं तिनको कुकुर खाइहैं ॥ ३ ॥ साखी ॥ खाते खाते युगगया, अजहुं न चेतो जाय ॥ काँहिंकवीर पुकारिकै, जीव अचेत जाय ॥४॥
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