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( १७६ ) बीजक कबीरदास । अथ अठहत्तरवीं रमैनी । चौपाई। मानुष मन्म चूकेजगमाझी। यहितनकेर वहुत साझी॥१॥ तातजननिकहै हमरोवाला।स्वारथलागि कीन्हुप्रतिपाला कामिनिकहै मोर पिय आही।वाघिनिरूप गरासै चाही॥३॥ पुत्र कलत्र रहैं लवलाये। जंतुक नाई रह मुँहवाये ॥४॥ काकगीध दोउ मरण विचारें। शूकरश्वान दोउ पंथनिहारें धरती कहै मोहिं मिलिजाई । पवन कहै मैं ले उड़ाई॥६॥ अग्नि कहै मैं ई तन जारों सो न कहै जो जरत उवारों॥७॥ ज्यहि घर को घरकहै गवारे । सो बैरी है गले तुह्मारे॥८॥ सोतन तुम आपनकैजानीविषयस्वरूप भुले अज्ञानी॥९॥ साखी ॥ यतने तनके साझिया, जन्मोभरि दुखपाय ॥ चेतत नाहीं वावरे, मोर मोर गोहराय ॥१०॥ मानुष जन्म चुकेजगमाझी । यहितनकेरवहुतहसाझी ॥१॥ तातजननिकहैहमरोवाला । स्वारथलागिकीन्हप्रतिपाला कामिनिकहैमोरपियआही। बाघिनिरूपगरासैचाही ॥३॥ | हे जीव ! तें मानुष जन्मजगत्के बीच में पायक चूकिगयो साहब को भजन न कियो या तनके साझिया बहुत हैं ॥ १ ॥ औमाता पिता कहै हैं हमारों पुत्रह आपने अर्थ में लगिकै प्रतिपालकरै है ॥ २ ॥ औ कामिनि जो परस्त्री है सो केहै है हमारो बडो प्यारो पति है बाधिनिरूप रति समय में गरासिबोई चाहै है अथवा वाके संगते मूड़हू काटो जायहै ॥ ३ ॥ .