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( १७२ ) बीजक कबीरदास । नहीं मारयो औ हिरण्यकश्यप को पछारिकै नहीं बाध्यो कहेनहीं बध्यो अर्थात् नृसिंह रूप नहीं धरयो ॥ ५ ॥ अरु वे साहब बाराहरूप धरिकै डाढ़में धरणी नहींधरयो औ क्षत्रिनको मारिकै निक्षत्र नहीं कियो अर्थात् परशुरामको अवतार नहीं लियो ॥ ६ ॥ अरु वे साइब करते गोवर्द्धनको नहीं धरयो अर्थात् गोविंदरूप नहीं धरयो औ न ग्वालके सङ्ग बुन बनमें फिरय है याते हलधर रूपनहीं धरयो ॥ ७ ॥ गंडकशालग्रामनशीला। मत्स्यकच्छवैनहिंजलहीला॥८॥ द्वारावतीशरीरनछाड़ा। लैजगन्नाथण्डिनहिंगाड़ा ॥ ९ ॥ अरु वे साहब गण्डक म शालग्राम का शिला नहीं भये औ न मत्स्य | कच्छ के जलमें परे हैं ॥ ८॥ अरु वे साहब द्वारावती में शरीर नहींछोडॉहै अर्थात कालस्वरूप नहीं धारण किया जौनजौन फिरि द्वारावताम छोड्यो है औ जगन्नाथ के उदर में ब्रह्म जो इधा में तेनराख्यो है सो वे साहब को तेज नहीं है यहि तरहते सगुण ने नारायण हैं औ सब अवतार हैं ते वे नहीं हैं ॥ ९ ॥ साखी ॥ कहँहिकवीर पुकारकै, वा पंथेमति भूल॥ |ज्यहिराखे अनुमानकर,सो थूलनहींअस्थूल॥१०॥ श्रीकबीरजी पुकारिकै कहै हैं कि, वा पंथेमतिभूलकहे न जाउ ज्यहि राखे। अनुमानकार कहे अनुमानकारि राख्यो है ब्रह्मको सोऊ वे साहब नहीं हैं औ स्थूलनहीं स्थूलकहे न थुलहोइ सो स्थूल कहावै अर्थत् निराकार नहीं है ताते सगुण निर्गुण साकार निकारके परे श्रीरामचन्द्र हैं यह बतायो दशरथके इहां नारायण अवतारलेइ हैं तिनको रामनाम होइ है तिनहीं रामरूपते सगुग निर्गु णके परे हैं ॥ १० ॥ इति पचहत्तरवी रमैनी समाप्ती ।