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( १७०) बीजक कबीरदास । बाणी में सव मरि मरि समाई है और पुनि वहीते. उत्पत्ति होइहै औ जौन सजीवको फंदायहै तैौनाही बाणीमें कहे सब आचारकरैहैं अथवा वही बाणीकों आचरणकरै है आपनेको ब्रह्ममानैहै काहूको आचार ठीक नहीं है ॥ ६ ॥ यह बाणीके फंदते बाहरवैकै परमपुरुष जे श्रीरामचन्द्र तिनमें जो लोगै ते पुनि जगदके पन्थको न जाहै अर्थात् फिर न जगत्में आवै ॥ ७ ॥ साखी ॥ भर्मकवांधलईजगत, कोइनाहिंकियाविचार ॥ | हरिकिभक्तिजानेविना, भवबूडिमुवासंसार ॥८॥ | यहि भांति भर्म जोमाया सबलित ब्रह्म त्यहि कारकैबँध्यो जो यह संसारही। ताको कोई नहीं बिचार कियो हरि कहे सबके कलेश हरनहारे वेद तात्पर्य्यर्थ जेश्रीरामचन्द्र तिनकी भक्ति के बिनाजाने भर्मके समुद्रमें संसार बूड़ि मुव कहे संसारीजीव बूड़ि मुयो ॥ ८ ॥ इति चौहत्तरवी रमैनी समाप्ता । अथ पचहत्तरवीं रमैनी । चौपाई। तेहिसावके लागोसाथा । दुइ दुखमेटिके होडुसनाथा॥१॥ दशरथकुलअंवतरिनहिंआया।नहिलंकाकेरायसताया॥२॥ नहिं देवकिक गर्भहिआया नहीं यशोदा गोद श्वेलाया॥३॥ पृथ्वीरमनदमननहिंकारया ।पैठिपतालनहीं बलिछलिया नहिंवलिरायसोमांड़ीरारी । नहिंहिरणाकुशवधलपछारी बराहरूपधरणीनहिंधरिया।क्षत्रीमारि निक्षत्रनकरिया॥६॥ नहिंगोवर्द्धनकरतेधरिया । नहींग्वालसँगबनबनफिरिया ७ गण्डकशालग्रामनशीलामत्स्यकच्छवैनहिंजलहीला॥८॥ द्वारावती शरीर न छोड़ालै जगनाथ पिंड नहिं गाड़ा॥९॥