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रमैनी । . ( १६९) जवजीव भूल्य है तहिया कहे तब स्थूल शरीर नहीं रह्यो औ गुप्तकहे सूक्ष्म कारण महाकारण येशरीर नहीं रहेहैं औ न तेहिजीवके सोगरह्यो औ न मायारहीहै ॥१॥ जैसेकमल पत्रमॅजल रहै है पै कमलपत्र में लिप्त नहीं है। है तैसेयह आत्मामें माया ब्रह्म यद्यपि सब कारण रहे हैं । परन्तु माया ब्रह्ममें आत्मालिप्त न रह्यो । २ ॥ ब्रह्लह्ववेकी जो आशाहै साईपियासहै सो ओसचाटे कहूं पियास जाईहै ओसके समजोहै ब्रह्मानंद सो जीवरूप हैं अंड तिनमें हैंहै अर्थात् कारणरूपते जीवमें बन रहँदै जब समष्टिजीवरह्योहै तब रहेतौ अगणित अंड परंतु सब मिलि एकई कहावत रह्योहै अगणित कोई नहीं कहत रह्यो ॥ ३ ॥ निराधार जो निराकार ब्रह्महै जामें सबजीव भरे हैं ताको आधा लै जानिये कि साहक्के लोक में है अर्थात् साहबक लोकका प्रकाशैहै तबतो समष्टिरही याही रामनाम लैकैबाणी उचरीकहे प्रकटभई इहां रामनाम लँकै बाणीप्रमटभई ताकहेतु यह कि बाणीमें जगत प्रगटकरिबेकी शक्ति नहीं रही रामनामको जगत् मुख अथ लैकैबाणी उचरीहै पांचोब्रह्म समत जगत् उत्पत्तिकियॉहै सोई इहां सिद्धांत केरै है ॥ ४ ॥ धर्मकहै सव पानी अहई । जातीके मन वानी रहई ॥६॥ ढोरपतंगसरै घरिआरा । तेहिपानीसवकरै अचारा ॥ ६ ॥ फन्दछोड़िजो बाहरहोई । बहुरिपन्थ नहिं जोहैसोई॥७॥ | वेदशास्त्रमें आत्माको धर्म है हैं कि आत्माचितहै याते चित धर्म है जैसे जलमें जलमिलै तो एकई होजाइहै ऐसेचिन्मात्र जो ब्रह्लहै तामें मिलिंकै चित्तजहै जीव सोएकई वैजाय काहेते कि दुहुनको चितधर्म एकई है औ जातीकहे सब जाति नेनावहैं ते आपने स्वस्वरूपको चीन्हैं हैं कि मैं साहबको अंशहौं जाति करिकै वहींहीं कछु स्वरूप करके नहींहौं भेद बनोई हैं बह सर्बज्ञहै मैं अल्पज्ञहौं वह बिभुहै मैं अणुहौं वहस्वतंत्र है मैं परतंत्र हौं यह जो कहेहैं कि आत्मा | ब्रह्मई है सोती बाणीको बिस्तार सामान्यधर्मलैकै कहैं ॥ ५ ॥ ढोर पतंग घरिआर आदिक जामें सरै हैं ताही जलमें सब आचार करै हैं अर्थात् जौनी