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( १६४) | बीजक कबीरदास । आसन उड़ाये कौन बड़ाई। जैसे कागचील्हमड़राई॥३॥ जैसीभिस्ति तैसि है नारी । राजपाटसवगनै उजारी ॥४॥ | औरै पदको अर्थ स्पष्टै है १।२।३ । अब फिरि साहब के जैनैयनको केहैहैं। कि भिस्तिकहे स्वर्गको मानैहै तैसेनारीकहे दोजख को मानहैं अरबीकी कि तावनमें भिस्तिको जिन्नत औ दोजखको नारी अर्थकै सम्बन्धते बहुत जगह कह्याहै अथवा नारकहे आगि सोनामें होय ताको नारीक है अर्थात् नरक और भिस्ति पाठहोय तोजैसे भिस्तिकहे देवालको मनैहैं तैसे नारीको मानैहैं और राजपाट जोहै जगत ताको उजारई गैनैहैं कि संसार हई नहीं है चित अचितरूप साहबईके हैं नरक स्वर्गादिक तामें प्रमाण ॥ नरक स्वर्ग अपबर्ग समाना । नहँ तहँ देखि धरे धनु बाना ॥ ४ ॥ जैसे नरकतसचंदनमाना । जसबाउर तसरहैसयाना ॥६॥ लपसीलौंगगनै यकसारा । खाँडै परिहरिफाकैछारा ॥ ६॥ जैसे नरककहे विष्ठाको तैसे चन्दनको मौनैहैं औ हैं तौ सयान कहे साहब को जानै परन्तु रहतबहुत बाउरही के तरहहैं ॥५॥ ॐ जे साहब को नहीं जानहैं। आपहीको ब्रह्म मानै तिनकोकहैहैं लपसी लौंगको एकई माँन खांड़ छोड़िकै छारको फांकै अर्थात् ताहूको एकही गनैहैं सर्वत्र एकही ब्रह्म माँनैहैं जो कहो समान दृष्टि करतईहैं साहबके गैर जनैयन कहे जाननवारे हैं ये आपहीको ब्रह्म माँनैहैं औ खांड़ परिहरिकै छार फांकैहैं ताका भाव यहहै खांड़ साहब मिठाई ताके देनेवारे तिनको छोड़ि के छारफांके हैं जामें सारकछुनहीं है। अहंब्रह्मास्मि ज्ञान करैहैं ॥ ६ ॥ साखी ॥ यहिबिचारते वहिगयो, गयीबुद्धिवलचित्त ॥ दुइमिलि एकै है रह्यो, मैं काहिवताऊहित्त ॥ ७॥ श्रीकबीरजी कह बिचारतवुद्धिको बलज है निश्चयकरिकै अहं ब्रह्म मानि सो येहू जातरह्यो औ चित्तजाहै सोऊ जावरह्यो मनोनाश बासना क्षय द्वैगई कछु बासना न रहगई दुइ जेब्रह्म औ जीव ते मिलिकै एकही है रहे जैसे