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रमैन । ( १६३) ते अधवटहैं और और मतवारे इनकेसमुझाये नहीं समुझे हैं। औ असंत संगकारकै । बिचारकी हानिहोइहै। कहाहानिहाइहै? कि औरऊका बिचारमन पर न लागै है अपने मतमें भ्रमहोन लँगैहै आपनो ठीकनहीं वह ठीक है जैसे आधी गगरी जलसे भरीहोइ तो वाकोजल डोलैंहै ऐसे साहबमें उनको ज्ञानतो पूरो नहीं ताते डॉलैहै औ जो | पूरा सो वाचलैकै बालैहै औरे प्रश्न सुनिकै वाकोबिचार लैलियो कहे समझि लियो कि यह वोलियो अधिकारी है हमारो कह्यो समुझैगो तब बॉलैहै जैसे भरी गगरी को जल नहीं डॉल है और जल वामें नहीं अमाय है ऐसे वे तो साहवके ज्ञान में पूर हैं सो उनको ज्ञान डॉलै नहीं है अरु और मतनको सिद्धांतके जे ज्ञान हैं ते उनके अंतःकरणमें नहीं समायहें ॥ ६ ॥ इतिस तरवीरमैनी समाप्ता । अथ इकहत्तरवीं रमैनी । चौपाई। सोग वधावासम करिमाना। ताकी वातइन्द्रनहिंजाना॥१॥ जटातोरि पहिरावै सेली । योग युक्तिकै गर्भ दुहेली ॥ २ ॥ आसनउड़ाये कौन बड़ाई। जैसे कागचील्ह मड़राई ॥३॥ जैसी भिस्त तैसि है नारी । राजपाट सब गनै उजारी ॥४॥ जैसे नरक तसचंदन माना । जसबाउर तसरहैसयाना ॥६॥ लपसी लौंग गनै यकसारा । खाँडै परिहरि फांकै छारा॥६॥ साखी । यह विचार ते बाहि गयो, गयो बुद्धि बल चित्त॥ । दुइ मिलिं एकै वै रह्यो, काहि बताऊ हित ॥७॥ सोगबधावा समकरिमाना। ताकीबात इंद्रनहिंजाना ॥१॥ जटातोरि पहिरावै सेली। योगयुक्तिकै गर्भ दुहेली ॥ २॥