यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

( १६२ ) बीजक कबीरदास । वोलाना कासोंवलियेभाई । वोलतही सवतत्त्वनशाई॥१॥ वोलतवोलतवाढु विकारा सोवोलियजो परैविचारा ॥२॥ वैरागिनकी संन्यासिनकी दशा जैसी हैरही है सो पूबैकहिआये सो ऐसे । पाखंडी संसार में द्वै रहेहैं बोलानाकास बोलिये बोलतहीमें सव तत्त्व नशाइ जाइ है।तत्वकहावैहै यथार्थ सो साहब के जे नामरूप लीला धाम यथार्थ हैं तेनशाइ जाइहै कहे भूलिजाइहैं ॥ १॥बोलत बोलत बिकारई बाढहै ताते सो बात बोलेये जेहिते साहब के नामादिकन को बिचार ठीक परिजाइ कौनी तरहते सांच विचार ठीक पेरै सो कहै हैं ॥ २ ॥ मिलैजोसंतवचनदुइकहिये । मिलेअसंतमौनवैरहिये ॥३॥ पण्डितसवोलियहितकारी । मूरुखसॉरहियेझखमारी॥४॥ जो संत मिलैतो दैवचन कहबऊ करिये बैबचन कह्यौताको भाव यह कि थोरई आपने प्रयोजन मात्र बोलिये औ सत्संग करिये काहेते कि उनके सत्संग किये बिचार बाढेहै औ असंत मिलै ते मौन है रहिये बोलिये न कहेते कि उनके संगते अज्ञान वाद है ॥ ३ ॥ तेहिते पंडितों बोलिये हितकारीहै काहेते कि पंडित नेहूँ ते सारासारको विचार करिके सार पदार्थ जे साहबहे तिनको ठीक कारकै असार जाहै धोखा ब्रह्म औ माया ताको छोड़ि दियोहै वे साहबको बतावेंगे औ मूरुख सों बोलिंबो झकमारीहै काहेते कि जो मूरुख सों बालै तौ अपने स्मरणकी हानिहोइ है वह तो समुझायेते समुझगो नहीं तबआपही झकमा कै रहिवाइगो पीछे क्रोध होइगे अरु मूरुख नहीं समुशैहै तामेंप्रमाण गोसांई जीको। सोरठा ॥ **फलैनफूलैबेत, यदपिसुधावरबैजलद्॥ मूरुखहृदयनचैत, जोगुरुमिलैंविरंचिसम' ॥ १ ॥ पानीकोपान भीजै तो बेधे नहीं । त्यों मूरुखको ज्ञान बूझावै तौ सूझैनहीं ॥ ४ ॥ कहकबीरई अधवट डोले। पूराहोय विचार लैबोलै॥५॥ श्रीकवीरजी कहेहैं कि जे सत्संगऊ करै हैं औ मूरुखहू सों बॉलै हैं शास्त्रार्थ करे हैं औ और और मतको सिद्धांतको जान चाहैहैं कि हमारे मत ठीक है कि औरऊमतठीक है परमपुरुष श्रीरामचन्द्र सूबते परे हैं यह सिद्धांतको निश्चय नहीं है।