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रमैनी। ( १६१ ) कारकै रोजगार करै हैं सोना पाहार कै वानाको लावै हैं ॥ ७ ॥ ॐ घोरा घोरी हाथी बहुत आपने संगलेत भये औ काहू राजाते गांव पायो करोरपती है या यश चलायो बड़े ज्ञानीहें बड़े भक्तहैं या यश चलायो ॥ ८ ॥ स्वाखी ॥ तियसुन्दरी न सोहई,सनकादिक के साथ ॥ कबहुँक दाग लगावई, कारी हांडी हाथ ॥ ९॥ लाव लश्कर में स्त्री साथ रहतई है सनकादिक जटाधारे वैष्णवनको कहैहैं। अथवा सनकादिक कहे जिनकी पांच वर्षकी अवस्था बनीरहेहै ऐसेब्रह्माकेपुत्र तिनहूको या मनाहोयतोकबीर जी कहै हैं कि संन्यासिनके साथमें सुन्दारीका सोहै है ? नहीं सहिहै कबहूँ दाग लगावतई है जैसे कारी हांडी हाथमें लेई तो दाग लागिही जायहै ऐसे जिनके जिनके संगमें स्त्रीरहेहै ते पाखंडिनको दाग लगते है। स्त्रीनते नहीं बचैहैं। नामके तोसंन्यासी बैरागीहैं अखाड़ा गृहस्थी बांधेहैं तहां स्त्री आवई चाहैं सो दाग लगावई चाहैं अथवा ऐसे पाखंडी त माया रूपई द्वैरहेहैं तेई मायारूपी सुन्दरी कहे स्त्री हैं तिनको संग न करै औ जो संग करै तौ दाग लगवई कैरै सो जीव ते पाखंडिनको संग न करै तामेंप्रमाण ॥(पुसांजटाधरणमानवता वृथैव मेधाविनामखिलशौचनिराकृतानाम् । तोयपदानपितृपिण्डबहिःकृतानां संभाघणादपिनराःनरकंप्रयांति ) ॥ इतिविष्णुपुराणे ॥ ९ ॥ इति उनहत्तरवीं रमैनी समाप्ती । अथ सत्तरवीं रमैनी। चौपाई। बोलानाकासों बोलियेभाई । बोलतही सवतत्त्वनशाई॥१॥ बोलतबोलत बाढ़ विकारा । सोबोलिय जोपरैविचारा॥२॥ मिलैजोसंतवचनदुइकहिये । मिलैअसंत मौनद्वै रहिये॥३॥ पंडितसों बोलियहितकारी । मूरुखसों रहिये झखमारी॥४॥ कह कबीर ई अधघट बोलै। पूरा होय विचार लैवोले॥८॥ ११ ।