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(१६० ) बीजक कबीरदास । साखी ॥ तियसुन्दरी न सोहई, सनकादिक के साथ॥ कवहुंक दाग लगावई, कारी हांडी हाथ ॥ ९ ॥ ऐसा योग न देखाभाई । भूला फिरै लिये गफिलाई ॥१॥ महादेव को पंथ चलावै। ऐसो बड़ो महंत कहावै ॥ २ ॥ हाटवाट में लावै तारी । कच्चे सिद्धन माया प्यारी ॥३॥ कव दत्तै मावासी तोरी।कव शुकदेव तोपचीजोरी ॥ ४ ॥ श्रीकबीर जी कहेहैं कि ऐसा योग हम नहीं देख्यो है कि साहबको ते जानै नहीं हैं गाफिल वैकै भूले भूले फिरै हैं ॥ १ ॥ अरु महादेव को पंथने तामस शास्त्रहै सो चलावै हैं औ बड़े महंत कहावै हैं ॥ २ ॥ सबके देखीवन को हाट में औ पहारन के बाट में तारी लगायकै बैठे हैं औ सिद्धकहावै हैं औ सबके देखावन को यह कहै हैं कि संन्यासीको धर्मनहीं है कि द्रव्यलेय औ हाथछुवै परंतु जो कोई चढाइकै चलौ जाइहै ताको चिमटाते लेकै कमंडलुमें डारिलइ हैं सो एसे कच्चे सिद्धन को माया बहुत प्यारी गैहे ॥ ३ ॥ दत्तात्रेय कबै मवासिनको शत्रुन को तौरचाहे औ शुकदेव कबै तोपखाना अपने साथ जोरकै चलायो है ॥ ४ ॥ कब नारद बंदूक चलाया । ब्यासदेवकवर्बत्रवजाया ॥६॥ कहिँलराई मतिकेमंदा । ईहैंअतिथिकितरकसर्वदा ॥६॥ भये विरक्त लोभ मनठाना। सोनापहिरि लजावेंवाना॥७॥ घोराघोरी कीन्ह बटोरा । गाँवपाययशचलो करोरा ॥८॥ | औ नारद मुनि कबै बंदूक चलायो है औ व्यासदेव कबै नगारादैकै काहूके ऊपर चढ़े ॥ ५ ॥ ई संन्यासी वैरागी मति मंद लड़ाई करै हैं ई अतिथि हैं कि, तरकस बन्दसावंतहैं? ॥ ६॥ भये तौ बिरक्त संन्यासी परंतु लोभ