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( १९४) बीजक कबीरदास । स्मृतिकहाआपुनहिं माना।तरिवरछलछागरबैजाना ॥९॥ जियदुरमतिडोलैसंसारा । तेहिनहिंसूझै वारनपारा ॥१०॥ | है जीवो ! तुम यह बिचारत जाउ कि निज कहे आपनो सार रामै नाम को साहब मुख अर्थ समझकै संसार ते छूटोगे अर्थात् साहब को स्वरूप औ तुम्हारो स्वरूप राम नामही में है औ सव कहे ब्रह्मई है यह जो मानि राख्यो है सो धोखा है झूठा है औ मायिक जा सकल संसार है सो झूठा है अथवा सकल संसार में और जे मत हैं ते सब झूठे हैं॥५॥ अहंब्रह्मास्मि ज्ञान करै है। सो सपने कैसी है अर्थात् झूठी है तैंत किंचित् कहे अणु वा बिभु है झूठलभत कछु न बिचारा तुम्हारे हिये में ब्रह्म नहीं समाय है कहे तुम्हारो ब्रह्म होइबो नहीं संभवित होइ हैं याको छोड़िदेव औ वाको पार नहीं है कहै लवरी और न होय है याते झूठ लोभाकिये है कि, मैं ब्रह्महोइ जाउँगो सो कछु न विचारा काहेते अच्छा विचारनहीं किये है अथवा कछू न विचारा कहे वा विचार कछू नहीं है मिथ्याहै॥६॥७॥ ८॥ जौन स्मृति बताँवैहै॥(स्याञ्जीवनेच्छायदितस्वसत्तायांस्पृहायदि । आत्मदास्यहरेःस्वाम्य॑स्वंभावंचसदास्मर॥१॥) सो तुम स्मृतिको कहा आप कहे आपनो स्वस्वरूप न मान्यो धोखोब्रह्ममें लगिकै अपने को ब्रह्ममानिकै तरिवर जाहै संसार ताके छल जो है धोखा ब्रह्मसोई है। छागकहे वकरा ताही वैकै कहे वह ब्रह्मवैके तुम जान्यो कि हम चरिलेईं अर्थ संसारते छूटिनाइँ सो एतो बड़ो संसार रूपी वृक्ष कहा धोखाब्रह्म बंकरा चरोचरिजाई है ॥ ९ ॥ जौन जीमें दुर्मति करिकै संसारमें डोलौहौ कहे फिरौही सो अहंब्रह्म माने संसारके वारपार न पावागे वहतो धोखाहै॥ १०॥ साखी ॥ अंधुभयासवडोलई, कोइनकरीविचार ॥ | हरिकिभक्तिजानेबिना,भवबूड़िआसंसार॥११॥ | श्रीकबीरजी कहै हैं कि मैं येतोसमुझाऊ हैं परंतु सबसंसार की ऑखि कुँटिगई हैं अंधभया सवडॉलैहै कहे फिरैहै यह विचार कोई नहीं करै है भक्तनका संसार दुःखहरै सो हरि जैहैं सबकेरक्षक परमपुरुष श्रीरामचन्द्र तिनकी अनुरागात्मिका भाक्त बिना जाने भव जोहै धोखाब्रह्म तैनैहै भ्रमको समुद्र ताहीमें संसार वूडमुआ कहे संसारी जीव बूडिमुये ॥ ११ ॥ इति पैंसठवीं रमैनी समाप्ता ।