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रमैनी । (१९३) साखी ।। अंधभया सवडोलई, कोइनाहिं करैविचार ॥ हरिकि भक्तिजानेबिना,भव बूड़िमुआ संसार ११ अपनेगुणकेऔगुणकहहू। यहै अभागजोतुननविचारहू ॥ तुमजियरावहुतेदुखपाया।जलबिनमीनकुवनसचुपाया २॥ चातृकजलहलभरे जोपासा । मेघनबरसैचलेउदासा ॥३॥ स्वागधरयोभवसागरआसाचातृकजलहलआशैपासा४॥ * स्वतःसिद्ध तुम साहबके दासही या जोआपनो गुणताकोअवगुण कहौ कि हम ब्रह्महैं सो या नहीं बिचारौहौ कि हम ब्रह्महै कि दासहैं याही तुम्हारी अभागैहै दासभूतप्रेतमान ॥(दासभूताःस्वतःसर्वेह्यात्मानःपरमात्मनः)॥ परमात्ममें बहुत दुःख पायो है जो छाया पाठ होय तौ बहुत दुखमें आयो सो जब बिनाकानी सचुपायेहौ?नहीं पायो। ऐसे बिनासाहबके जाने सचुनपावोगे?॥ १॥२॥ जैसे जब मेघ स्वातीको जलनहीं बरपैहै तब चातृकउदासैरहै है कहे पियासैरहैहै जो नजीक समुद्रौ भरोहोय तौकहाहोइ ऐसेस्वामी मेघसम रामोपासक पूरागुरु तुमनहीं पायो जो साहबको बताइदेइ ताते तुम उदासईगया और और में लगावन वारे गुरुवालोग जो उपदेशऊ कियो पै जनन मरण ने छूट्यो ॥ ३ ॥ भवसागर ते पारहोबे की आशाकरि स्वांगजो धोखाब्रह्म तौनेकोतुमधरयो कि अहंब्रह्मास्मि मानिसंसारते छूटिनाइँगे सो तुम्हारी आशा चातृककी भई कि स्वातीत पायो नहीं जो बहुतजलहै पै बिना स्वाती चातृककी आशा फांसही द्वैगई अथवा स्वांग धोखा ब्रह्म को जो तुमधरयो है सो साहबकी आशाकह दिशानहीं है भवसागरहीकी आशाकहे दिशाहै ॥ ४ ॥ रामैनाम अहै निजसारू । औसवझूठ सकलसंसारू ॥ ८॥ किंचितहै सपनेनिधिपाई।हियनमा कसँधैरैछिपाई ॥६॥ हरिउतंगतुमजानि पतंगा । यमघरकियोजीवकोसंगा॥७॥ हियनसमायछोड़नहिंपारा।झूठलोभलैंकछुनविचारा॥ ८॥