( १५०) बीजक कबीरदास । साहवमें लॉगैहै सोई सवते श्रेष्ठ होय तामें प्रमाण॥(विप्राधिइगुणयुतादरविंद नाभपादारविंदविमुखाच्श्वपचंवार छम् । मन्येतदपिर्तमनावचनेहितार्थप्राणंपु- नातिसूकुलंनतुभूरिमानः ) ॥ १ इतिभागवते ॥ ६ ॥ इति बासठवीं रमैनी समाप्ता ।। अथ तिरसठवीं रमैनी । चौपाई। नाना रूप वर्ण यककीन्हा । चार वर्ण उनकाहु नं चीन्हा॥ नष्टगये करता नहिँ चीन्हा । नष्टगये औरहि मन दीन्हा॥२॥ नष्टगये जिन वेद वखाना। वेद पढ़ा पै भेद न जाना ॥३॥ विमलषकरैनर ननहिंसूझाभो अयानतवकछुवनबूझा॥४॥ साखी ॥ नाना नाच नचाइकै, नाचै नटके वेष ॥ घट घट अविनाशी वसे, सुनहु तकी तुम शेष ॥५॥ | वर्ण धर्मखंडन कर आये अब सब बर्णको एक मानिने साहबको भूलैहैं तिनको खंडनकरै हैं । नानारूप जे जीव तिनको एक वर्ण कहे एक रंग करि देत भयो अहंब्रह्मास्मि कारकै सब मानत भयो कि हमहीं सब हैं दूसरा नहीं है चारिउवणे वहीको वर्णन करतभये यह न जानतभये कि यह धोखा ब्रह्मको खाई लेइहै।। फिरफिर सब जीव नष्ट द्वैगये कहे मरि गये उद्धारकर्ता जो साहब है. ताका न चीन्हतभये औ औरहि जो धोखा ब्रह्महै तौनेमें मन दैकै नष्टलैगये अर्थात् लीन, द्वैगये साहबकोतो जाने नहीं फिर संसारी भये॥२॥नै वेदको बखानि२कै पढ़िप- द्विकै औरनको अर्थ सुनावै हैं तेवेदपढ्यो परंतु भेद न जान्या कहै वेद को तात्पर्य ने साहब हैं तिनको न जान्या तेहित नष्ट द्वैगये सब वेदको भेद साह- बहै तामें प्रमाण ॥ (सर्ववेदायत्पदमामनन्ति) ॥ ३ ॥ बिमलव जे साहब मन वचनके परे ताको खंकहे आकाशवत् शून्य ज्ञान करै है कि, वह नहीं हैं। आकाशवत् ब्रह्मही पूर्ण है से उनके ज्ञान नेत्र तौ हई नहीं हैं साहब कैसे सूझि
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बीजक कबीरदास ।