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( १४५ )
रमैनी ।

रमैनी। (१४५ ) अथ साठवीं रमैनी । चौपाई छाड़हु पतिछाड़ लवराई।मनअभिमानटूटितवजाई॥१॥ जनचोरी जो भिक्षाखाई।फिरिविरवा पलुहावन जाई ॥२॥ पुनिसंपति औपतिको धावै।सो विरवा संसार लै आवै॥३॥ साखी । झुठा झूठेके डारहूं, मिथ्या यह संसार । | तेहिकारण मैं कहतहों, जासों होय उबार ।। ४।। छाड़हुपातिछाड़हुलवराईमनअभिमानटूटितवजाई ॥ १ ॥ जनचोरीजोभिक्षावाई । फिरिविरवापलुहावनजाई ॥ २॥ पुनिसंपति औपतिकोधावै ।सोविरवासंसारलेआवै ॥ ३ ॥ कबीरजी कहै हैं कि नाना देवता जो पतिमानीही सो औ लवराई जा धोखा ब्रह्महै ताको छोडिदेउ न छोड़ोगे तौपुर्निकै जब संसारआवोगे तबतोअभिमान दूरिहोजाय अर्थात नानावितनही की सुधिरहिजायगी न धोखा ब्रह्महीको सुधि- रहिवाइगी॥१॥काहे ते कहे हैं कि ब्रह्मको छोड़िदेउ? सोआगे कहै हैं जीव या सनातनको साहबको है सो जे जन साहबते चोराईकै और देवतनते भिक्षा मांग खायहैं औ फिरि २ बिरवारूप देवतनको पलुहावैकहे प्रश्नकरे जायतें पुनि उनहीं सों सम्पति कहे नाना ऐश्वर्य होय सिद्धि होइ औ पति कहे राजाहोय । इंद्रहोय याको धावै हैं सो वे बिरवारूप जे देवता हैं ते फिरि फिरि संसारमें लै आवै हैं जन्म मरण होय है ॥ २॥ ३ ॥ साखी ॥ झुठाझुठेकैडारहू, मिथ्यायहसंसार । तेहिकारणमैंकहतहौं, जासों होयउबार ॥ ४ ॥ । सो झूठा जो ब्रह्महै ताको झूठ समुझिलेउ अरु देवता संसार ही में हैं सो | यह संसार जाहै तो मिथ्या मानिलेउ औसबको कारण जौन सत्र जा