तरूपी राज्यके विकर कैसे आवेगों क रमैनी । (१४३) तोकोसंसारबाधा न करिसकैगो । जगरूपी राज्यके विषयानंद ब्रह्मानंद आदिक जे सुखही ते सुखनहीं हैं जो कहा साहबके लोक जाइ फेरि कैसै आवैगो उहां गये तो अपुनरावृत्ति कहिआये हैं तोकबीरजी बीरसिंह देवको साहबके लोक लैगये लोक देखाईकै पुनि लैआईकै शिष्य करतभये औं श्रीकृष्णचन्द्र गोपन आपनो लोक देखाइ पुनि लैआये हैं उनको जगत् बाधानहीं करिसकैहै वे साहब लोकही मॅहैं काहेते कि साहवको लोकप्रकाश सर्वत्र व्यापक है साहबकी सकळ सामग्री साहबके रूपई वर्णन कर आये हैं साहब लोकप्रकाश सईप है तौसाहबके लोक साहब सर्वत्रपूर्णई है । जे साहबको जानै हैं औ जगतुङमें हैं तौसाहब के लोकई में बने हैं उनको संसार बाधा नहीं करिसकै ॥ ३ ॥ एकोवार न जैहैवाँको । वहुरि जन्म नहि होइहै ताको॥४॥ जायपायदेहसुखधाना । निश्चयवचनकवीरकोमाना ॥६॥ एकोबार न बॉको जाइगो जन्म मरण तेरोछुटिही जायगो फेरि जन्म मरण न होइगो॥४॥औ संपूर्ण जे पापहे ते जात रहेगें औसुखको धाना कहे समूह तोको देउँगे। सोसाहब केहहैं कि हेनीव!कबीरजीको वचन तुम निश्चय मानके मेरेपास आवो, साखी ॥ साधुसंत तेईजना, जिन माना वचनहमार ॥ आदिअंतउत्पति प्रलय,सवदेखा दृष्टिपसार॥६॥ जे हमारो कह्योबचन प्रमाणमान्योहै तेईसाधुहैं कहेसाधन करण तारे हैं । तेई संत तिनहींके मनादिक शांत है गये हैं औ तेई आदिअंत उत्पत्ति प्रलय सब बात दृष्टि पसारिकै देख्यो है अर्थात् सब बातजानि लियो ॥ ६ ॥ इति अट्ठावनवीं रमैनी समाप्ती । अथ उनसठवीं रमैनी। चौपाई। चढ़तचढ़ावत भड़हरफोरी । मननहिंजाने को करचोरी १ चोर एक मूसल संसारा । बिराजन कोई जाननहारा २ स्वर्ग पताल भूमि लै वारी । एकैराम सकल रखवारी ॥
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रमैनी ।