रमैनी । ( १३७) अथ पचपनवीं रमैनी। चौपाई। गये राम अरुगये लक्ष्मना । संग न गै सीताअसधना १ जातकौरवनलाग न वारा । गये भोज जिन साजल धारा२ गै पांडवकुन्तीसी रानी गैसहदेव जिन मति बुधि ठानी३ सर्व सोनेकै लंक उठाई । चलत बार कछु संग न लाई४ कुरियाजासु अंतरिक्ष छाई । हरिचन्द्र देखिनहिं जाई ५ मूरुख मानुष अधिक सजोवै।अपना मुवल औरलगिरोवै६ इ न जानै अपनो मरि जैवै । टका दश विढ़े और लै लैबै७ साखी । अपनी अपनी कार गये, लागिन काहूके साथ॥ अपनी करिगयो रावणा,अपनी दशरथ नाथ॥८॥ गयेराम अरुगये लक्ष्मना । संगनगै सीता असिधना ॥ १॥ देवतन मुनिनको कहिआये हैं अब राजनको कहै हैं काहेते कि, आगे दश- अवतार कहिआये हैं इहां पुनि राम कही है तहां इहां जे जीव राम राजा भये ताको औ लक्ष्मणको महाभारतसभापर्वमें नारद युधिष्ठिरते कह्योहै राजनके गिनतीमें यमकीसभामें । तिनको कहै हैं कि, रामगये लक्ष्मणगये औ संगमें साता असनारी न जातभई । जो यह अर्थ कोई न मानै तौयह कहै हैं कि, नारायणके अवतार रामचन्द्र तिनेहीको जाइबो कबारक है हैं तो कबीरजी तौ सांचके कहवैया हैं झूठी कैसे कहेंगे सब रामायणम बर्णन है कि प्रथम जानकी शरीर ते सहितगई हैं पुनि श्रीरामचन्द्र शरीरते सहित जातभये जिनके संग श्रीशक्ति भूशक्ति' लीलाशक्ति शरीरं सहित चळजाताहै सो जो कबीरजी व राना नै भयै हैं तिनको नाइबेको न कहते तो संगमें सिया सि धना न गई यह कैसे लिखते ॥ १ ॥
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रमैनी ।