तवचेतिहौजवतजिहौप्राना । भयाअन्ततवमनपछिताना ४ यतनासुनतनिकटचलिआई।मनकोविकार न छूटेभाई ५॥ साखी ॥ तीनिलोकमों आयकै, छूट न काहू कि आश॥ यकआंधर जग खाइया,सवजग भया निराश ॥६॥ उनत अधिक सिद्धिकौन साध्य है जाको मन निश्चल होइ अर्थात् सिद्धिसा- धे भन निश्चल नहीं होय ॥ २ ॥ जबलग शरीर में मनहै तबलग चेतन कारकै अथवा महादेव जे हैं औ बड़े बड़े मुनिज ते अंतनहीं पायो जो कोऊ जान्यौहै ते वोही साधन तेजान्यों है कहे ज्ञान करिकै वह परम पुरुषको कोईनहीं देखे हैं ॥ ३ ॥ कबीरजी हैहैं कि तुम तब चेतिहौ जब प्राण छोड़ोगे ? तब- कहां चेतौगे यह याकु भाव है जब अनतही जाई शरीर पावोगे तब मनको पछि- तावई रहिनायगो जो भया अयान पाठ होइ तौ यह अर्थ है कि तुम जो अया- नेभये साहबको न जान्यो हमारकहा मानवई ने कियो तैौ अब पछिताना क्याहै। पछितातो काहेको है संसार पीर सहा ॥ ४ ॥ यह सब जगत् शास्त्रनम सुनाहै। कि मौत निकट चलीआवै है हमहूँ मरिजायँगे पै मरघट ज्ञान कथैहै मनको विकार नहीं छोड़ेहै ॥ ५ ॥ तीन लोकमें आइकै सब मरिगयो परन्तु काहूकी आशा न छूटतभई एक आंधरज है मन सोजगत्को खाइलियो सब जगत् परमपुरुषके मिलबेको निराश है गयो । इहां आंधर कह्यो सो मन परमपुरुषको कबहूँनहीं देखैहै काहेतेकि साहबमनबचनकेपरै है आपही शक्तिदइहैजीवकों तबहादेखैहै ॥ ६ ॥ इति तिरपनवीं रमैनी समाप्ता । अथचौवनवीं रमैनी। चौपाई। | मरगयेब्रह्माकोशिकेवासी । शीव सहित मूये अविनासी | मथुरा मरिगयेकृष्णगुवारा। मरि मारे गये दशौ अवतारा२ | मरिमरगयेभक्तिजिनठानी। सर्गुणमें जिन निर्गुण आनी ३
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रमैनी ।