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( १३० )
बीजक कबीरदास ।

( १३०) बीजक कबीरदास । अथ इक्यावनवीं रमैनी। चौपाई जाकरनाम अकडुवाभाई । ताकर कही रमैनी गाई ॥१॥ कको तात्पर्य है ऐसा । जस पन्थी बोहित चढ़िवैसा॥२॥ हैकछुरहनिगहनिकीबाता। बैठारहत चला पुनिजाता ॥३॥ रहैबदननहिंस्वागसुभाऊोमनस्थिर नहिं बोलै काऊ॥ ४॥ साखी ॥ तनरहते मन जातहै, मनरहते तनजाय ॥ तनमन एकै वैरह्यो, हँस कबीर कहाय ॥६॥ जाकरनाम अकढुवाभाई । ताकर कहीरमैनी गाई ॥ १॥ | जाको नाम अकह हैं ताकी तै हिन्दू मन बचनकेपरे कहते हैं औ मुसल-


धन बेचिगून वेनिमून कहते हैं । सो हम पूछतेहैं “हिन्दूकहै कि,

वह तो निरंकार होतो तौक हैहैं कि, बेद मेरी श्वासाहै शरीर न होतो तौ वेद- श्वासा कैसेहतै । जोकहोवेद तो मायकहै साकारहै तौ' मिथ्याके बताये तुमहीं सांच पदार्थ कैसे जानिहै । जो कहे साकार तौ मध्यम परमान ठहरा य तौ अनित्य होइहै अकढुवा न होइगो । अरु जो मुसलमान निराकार कहै कि उसके आकार नहीं है तो मूसा पैगंबरको कोहनूरके पहाड़ में छंगुनी देखायो सो वह पहाड़ छार वैगयो जो शरीर न होतोतौ छगुनी कैसे देखावतो। कुरानमें लिखैहै। कि जिंसतरफ़ अपनामुंह फेरै तिसी तरफ़ साहबका मुंहहै, औ सबके हाथके ऊपर अल्लाहको हाथहै, औ अल्लाह महम्मदसों कहतेहैं कि, “जिसका हाथ- करातूने तिसका हाथपकरा मैं तब सौं इनलीलैंते यहआवताहै कि, उसके शक- हैं । पै जिस तरहकीशकल सोकोईनहीं कहिसकैहै काहेते कि जो उसके मिसाल दूसरा कोई होय तौ उसकी उपमादैकै समुझाय सक्ते सो उसकी शकल तो कोईनहीं समुझाय सक्ता है। लेकिन जो कोई उसकी शकल देखा है सोई जानताहै ।