(१२४) बीजक कबीरदास । पियतभयो औजो जगत्मुख अर्थमें लग्यो सोपानिहीपानी पियतभयो साहब मुख अर्थ न जान्यो एते सबमरगये ॥३॥अपने अपने पन्थ चलावतभये जब पवन थकितभयो कहे श्वासारहितभई तब दशौदिशा कहे दशौ इंन्द्रिनारके जे देवता ते जातरहे तब दश द्वारको जो शरीरगाउँ सो उजारि द्वैगयो कहै-मरिगये याते या आयो कि जे नानामत चलावै हैं मतयहै रंहिनायहै जो शरीर में मारकै मये ताहीकी सुधि हैहै ॥ ४ ॥ मीनजालभोई संसारा। लोहकिनावपानकोभारा ॥६॥ याही रीतिते मरत निघत ने मीनरूप जीव तिनको यहि संसारसमुद्र में बाणी जालफंदनको भयो सो के जाल में फँदे ते तो अविद्याके जालमें फैदेही हैं। ने उबरे चाहै हैं तेजड़वत् जोमन पाषाण ताहीको है भार जामें ऐसी जोअविद्या- रूपी लोहे की नाव तामें चढ़े सोवह बूड़िही जायंगी फिरवही संसारमें परे हैहैं ॥ ५ ॥ | खेवै सवै मर्म नहिं जाना । तहिवो कहै रहै उतराना ॥६॥ सब गुरुवानन खेवै हैं कहे वहीं धोखाव्रह्ममें लगावै हैं औ या कहहैं कि हम मर्मनान्योहै तुम यामें लगौ पारद्वैनाउगे सोवह जो संसारसमुद्र में अविद्या- रूपी नाव मन पाषाण ते भरी बूड़िही जायगी तामें गुरुचेला दोउ बुड़िही नायँग पार न पावेंगे अर्थात् वेदान्त आदि नाना शास्त्रनमें नाना तर्क उठाय उठाय विचार करतऊ जाय संकल्प बिकल्प नहींछूटै तात्पर्य तो जानै नहीं है नन्मभरि चेलापूंछतई जाय है परंतु तबहूँ यही कहै हैं कि तुम संसार समुद्रमें उतराने हौ कहे उबरेही यह नहीं विचौरहैं कि संकल्प विकल्प छूटबई नहीं कियो संसारते कैसेउवरेंगे ॥ ६ ॥ साखी ॥ मछरीमुखजसकेचुवा, मुसवनमुंहगिरदान ॥ सर्पन माहँ गजुवा, जाति सवनकी जान ॥७॥ जैसे मछरीके मुखमें केंचुवा मुसवानके मुहँ में गिदन अर्थात् जब मूस गिदनका रंगदेख्यो तबलालमास अथवा लाल फल जानि घरनधाय जब फेंक
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बीजक कबीरदास ।