( १२० ) बीजक कबीरदास । साखी ॥ गुरुद्रोही औ मनमुखी, नारी पुरुष विचार ॥ तेनरचौरासीभ्रमहिं, जवलागि शशिदिनकार ॥६॥ जिनजिवकीन्हआपुविश्वासानरकगयेतेहिनरकाहवासा १ | जे नर अपने में विश्वास कियो कि हमारो जीवात्मॉहै सोई मालिकेहै दूसर नहीं है । एकै ते नरकी मुक्तिकी बातें कौनक है वे स्वर्गहू नहीं जायेहैं नरकमें जायकै नरकहीमें वास किये रहै हैं काहेते नरकही जाय कि इहांत तीर्थ ब्रत संयम जो स्वर्गजावे को उपाय। तेतौमिथ्यामानिछाडिदियो जीवात्मैको- मालिकमान्यो दूसरा मालिक न मान्यो जो यमतें रक्षाकरै औं वेद पुराण को मिथ्या मान्यो छुटनको उपाय एक न कियो जब यमदूत मोगालैकै मारन- लगे बांधकै कांटामें कट्टिछावनलगे तवमूढ़पुकारनलाग्यो गुरुवा लोगनको ते रक्षा न किये औगुरुवालोगनहूँकी वही हवाल देखनलग्यो सो साहबको नाम तो सबछोड़कै लियोनहीं जो यमते रक्षाकरि वहांको लैजाय इहांस्वर्गजाबेवारो- सुकर्म किया नहीं ये अहमक ऊंटके से पाद जन्म आँवाइ दिये न इतके भये ना उतके भये तामें प्रमाण ॥ “रामनाम जान्योनहीं कहाकियो तुमआय ॥ इतकेभय न उतके रहियाजनमवाय ॥ १ ॥ आवतजातनलागाहवारा । कालअहेरीसांझसकारा ॥ २॥ चौदहाविद्यापढ़िसमुझावै । अपने मणकिखबरिनपावै॥३॥ आवत जात बारनहीं लेगैहै कहे पुनिपुनि जन्म लेइ है काल जो अहैरींहै। सोसांझ सकार उनको खायहै वहीं बासना उनकी बनारहँदै फेरि वाही मनमें आरूढदै फेरि वही नरकहीं को जायँहै॥२॥औ चौदही विद्या पट्टिकै गुरुवालोग ने ते औरैकोत समुझाईं हैं परंतु अपने मरणकी खबर नहीं पावै ॥३॥ जानोजियकोपराअंदेशा । झूठ आनिकै कसै सँदेशा॥ ४॥ संगति छोड़ि करै असरारा । उवहै नर्कमोटको भारा॥५॥
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बीजक कबीरदास ।