( ११४) बीजक कबीरदास । करमतसो जो गर्भऔतरिया। करमत सोजोनामहिंधरिया३ करमत सुन्नति और जनेऊ । हिंदू तुरुक न जानै भेऊ॥४॥ साखी । पानीपवन सँजोयकै, रचिया ई उत्पात ॥ | शून्यहिंसुरतिसमानिया, कासोकहियेजात ॥५॥ जिन्हकलिमाकलिमालॅपढ़ाया।कुदरतखोजितिन्हौंनहिंपाया करिसतकर्मकरैकरतूती । वेदकिताब भया खबरीती ॥२॥ जिन्ह महम्मद सबको कलियुगमें कलिमा पढ़ाया। तेऊकह्योहै कि हम अल्लाहके कुदरतिको खोजकहे अंतनहीं पायो ॥ १ ॥ आपन आपन मतकारकै करतूति कैकै कर्म करनलगे सो वेदकिताब सबरीति द्वैजातभये ॥ २ ॥ करमतसोजोगर्भौतरिया । करमतसोजोनामहिंधरिया ३ करमत सुन्नति और जनेऊ । हिंदू तुरुक न जानैभेऊ ॥४॥ कर्महिंते गर्भमें आय अवतार लेतेभये अरु कर्महीते नामपरतभये ॥ ३ ॥ भौ कमैंने सुन्नति औ जनेऊ चलतभयो ताको भेद हिंदू तुरुक दूनो न नानत भये ॥ ४ ॥ साखी ॥ पानी पवन संजोयके, रचिया ई उत्पात ॥ शून्यहिंसुरतिसमानिया, कासोकहियेजात ॥५॥ पानी कहेविंदु अरुपवन ये दूनौके संयोग ते गर्भभयो कहे शरीररूपी उत्पात खड़ाभयो सो कर्म में लगे जन्म मरणादिक येते उत्पात भये पै कर्म न छोड़ तभये अरु निन कर्म छोंड़िवोऊकियो तिनको सुरति शून्यॆमें समाई जाती भई सो वहां की बात कासों कही जात अर्थात् काहूस नहीं कहिनायतै नेति- नेतिकहि देइ हैं अर्थात् उहां तै शून्यैह कुछुहाथ न लग्यो ॥ ५ ॥ इति उन्तालीसवीं रमैनी समाप्ती ।
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बीजक कबीरदास ।