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w w w w w ع ० w w ع ० w ع ० ० w ع w ० ع बीजककी-अनुक्रमणिका। (१३) विषय. | पृष्ठ. | विषय. | पृष्ठ. अस्ति कहौं तो कोई न पतीने ६०९ | प्रथमै एक जो हौं किया ... ६१८ सोना सज्जन साधु जन ••• ६१० | कबिरन भक्ति बिगारिया .... ६१९ काजर केरी कोठरी... .... | रही एक की भई अनेक की ६१९ काजर ही की कोठरी | तन बोहितं मन काग है .... ६१९ अर्ब खर्ब लौ द्रव्य है। ज्ञान रतन की कोठरी .... ६२० मच्छ बिकाने सब चले .... स्वर्ग पताल के बीच में पानी भीतर घर किया ... मछ होय ना बाचिहों सकलो दुर्मति दूरकरु ... ६१२ ... जैसी कहै करै जो तैसी ... बिनु रसरी गर सब बंध्यो .... ६१३ द्वारे तेरे रामजी ... ... समुझाये समुझे नही ... नित खरसान लोह घन टूटै * भर्म परा तिहुँ लोक में ... लोहे कैरीनावरी ... ... ६१३ | रतन अडाइन रेत में ... ६२१ कृष्ण समीपी पांडवा .... ६१३ |जते पत्र वनस्पती ... ... ६२१ पूरब ऊगे पाश्चम अथवे ... ६१४ | हम जान्यो कुल हंस हौ ... ६२२ नैनके आगे मन बसे ... गुणिया तो गुणको गैहै ... ६२२ मनस्वारथी आपै रसिक .... | अहिरहु ताज रखसमहु तज्यो... ६२२ ऐसी गति संसार की ज्यों मुखकी मीठी जो कहें ... ६२३ गाडरकी ठाट ...। इतते सब तो जात हैं ... ६२३ वा मारग तो कठिन है । भक्ति प्यारी रामकी... ... ६२३ मारी मैरै कुसंगकी....... ६१५ | नारिकहाँवै पावकी ... केरा तबही न चेतिया ६१५ | सज्जन तौ दुर्जन भयो ... जीव मरण जानै नहीं ... ६१६ | विरहिनी सानी आरती ...• ६२४ जाको सतगुर ना मिल्यो ... ६१७ | पलमें प्रलय बीतिया....... ६२४ अनत वस्तु जो अन्ते खोजे .... ६१७ | एक समाना सकल में सुनिये सब की निवेरिये अपनी ६१७ | यकसाधे सब साधिया .... ६२५ वाजन दे वायंत्री .... .... ६१८ | जैहिवन सिंह न संचरे गाँवै कथै विचौरे नाहीं ... ६१८ | सांच कहाँ तो है नहीं *

  • यह साखी इस में छोडदी है। । * यह साखी इसमें नहीं है।

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