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। । । (९८) बीजक कबीरदास । अलख जो वह ब्रह्म है सो सबके पलकमें लाग्योहै अर्थात्पलपलमें ध्यानकरै। औ एक पलही में डसिजाय अर्थात् जो गुरुवनके मुंहैते कढ़या सा पलै में वाज्ञान लगिजाय। सा साहब कहै हैं कि मैं मेरोहै मेरी तरफ आउ यहि विषको हरनवारो जो ज्ञान ताका तो मानतही नहीं है मैं जो गारुड सो काहकरौ॥७॥ इति उनतीसवीं रमैनी समाप्ती ।। अथ तीसवीं रमैनी। चौपाई । औ भूले पटदरशन भाई । पाखंडवेष रहा लपटाई ॥१॥ जीवसीवका आयन सौनाचारो वद्ध चतुरगण मौना ॥२॥ जैनी धर्मकमर्म न जाना । पातीतोरि देव घर आना ॥३॥ दवना मरुवा चेपा फूला। मानोंजीव कोटि समतूला ॥४॥ औ पृथिवी को रोम उचारे । देखत जन्म आपनो हारे॥ मन्मथ बिन्दुकरै असरारा।कलपैबिन्दुखसै नहिद्वारा॥६॥ ताकर हाल होय अघकूचा।छादशनमें जैन विगूचा ॥७॥ साखी ॥ ज्ञान अमर पद बाहिरे, नियरे ते है दूर ॥ जो जानै तेहि निकटहै, रह्यो सकल घटपूरि ॥ ८ ॥ औभूले षट दरशन भाई । पाखंडवेषरहा लपटाई ॥१॥ जीवसीवकाआयनसौना। चारोवद्धचतुरगुण मौना ॥ २॥ | पाखण्ड वेष जो धोखा ब्रह्म सो सर्वत्र लपेटाइ रह्योहै ताहीमें षट्दर्शन | ले तेऊ भूलिमये ॥१॥यह जो धोखा ब्रह्मको ज्ञानेही सो जीव जॉहै ताको सीव जो कल्याणहै सो नशावनवारोहै औचारों प्रकारके जीव जे हैं तेऊ बद्धहैं। जे चतुर हैं तेगुणमौनाकहे गुणातीत हैं परंतु वोऊ धोखा ब्रह्मा में हैं ॥ २ ॥