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रमैनी । (९७) बहुते तृण क्षणमें करिदेइहै अरु तृणते बकरिदेईहै ऐसेपरमपुरुष श्रीरामचन्द्रको जानो ॥ १॥ निझरूनरूकहे जिनको मायाब्रह्मको धोखा निझरि गयो कहे मिटिगया ऐसे जे नर हैं ते पूरा गुरुपाईंकै परमपुरुष जे श्रीरामचन्द्र तिनको जानिकै संपूर्ण जगत्के कर्म त्यागिदेईं हैं औ जे कर्ममें बँधे हैं ते अनेक लालचरै हैं कोई द्रव्यादिक की कोई ब्रह्ममिलन की कोईईश्वरनकी ॥ २ ॥ कर्मधर्मबुधिमतिपरिहरिया। झूठानामसांचलैधरिया ॥३॥ रजुगतित्रिविधिकीनपरकाशा। कर्मधर्मबुधिकेरविनाशा॥ साहबके मिलनवारो जो कर्मधर्म बुधिहै ताको त्यागिदेतेभये झूठेझूठे जे देवताहै तिनको नाम सांचमार्निकैजपतभये ॥३॥ गुरुवालोग रजोगुणी तमोगुणी सतोगुणी तीनप्रकारके मत प्रकाशकैकै साहबके मिलनवारो नो कर्म धर्म बुधि है ताको नाशकरि देत भये ॥ ४ ॥ रविकेउदयतारा भोछीना । चरखेहरदोनों में लीना ॥६॥ विषकेखायेविषनहिंजावै । गारुड़सोजोमरतजिआवै ॥६॥ हे जीवो ! गुरुवालोग तुमको उपदेश देयँ हैं जैसे सूर्यके उद्द्य मो ताराको तेजक्षीण वैजायेहै ऐसे जबज्ञानभयो जीवत्वमिटयो तब चर औ वेहर जो अचर ये दोनोंमें लीन है जाय है चरअचर ब्रह्मरूपते आपनेनको मॉनेहै ॥५॥सो साहब कहे हैं। कि हेजीवो! ऐसो उपदेश ने गुरुवालोग तुम्हें दियो से ठीकनहीं है काहेते कि संसार बिष उतारिबेको तुम धोखा ब्रह्ममें लगैहौ सो बिषके खाये बिष नहीं जाइहै यह धोखाब्रह्म बिषरूपैहै संसार देनवारोहै गारुड़ सो कहाँवैहै जो मरतमें जिआइलेइ सोमेरोज्ञान धोखा ब्रह्मबिषते बचाई कालते बचाइलेइ ताको जाने ॥ ६ ॥ साखी ॥ अलखजोलागीपलकमों,पलकहिमोंडसिजाय ॥ विषहरमंत्र न मानही, गारुड़ काह कराय ॥७॥