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रमैनी । कहे काहे जड़वत् होयहै मनुष्य जन्म याते कह्यों अथवा जहँडाय कहे काहें भूले जाते हैं कि, मनुष्य के मानुष्यै होय हैं हाथीके हाथी होय हैं कछू हाथी के मनुष्य नहीं होयहैं ऐसे जो हैं निराकार ब्रह्मको हो तो तोहूं निराकार | होतो सो तें मनुष्य है ताते मनुष्यरूपजे श्रीरामचन्द्र तिनही को है ॥ ६ ॥ इति तेईसवीं रमैनी समाप्ता ।। | अथ चौवीसवीं रमैनी । चौपाई । चंद्रचकोर कसिवातजनाई । मानुषबुद्धिदीन पलटाई॥१॥ चारि अवस्था सपनो कहई । झूठे फूरे जानत रहई ॥२॥ मिथ्यावात न जाने कोई।यहिविधि सिगरे गये विगोई॥३॥ आगेदैदै सबन गॅवावा । मानुष बुद्धि न सपनेहु पावा॥४॥ चौतिस अक्षरसों निकलें जोई।पापपुण्य जानैगा सोई॥६॥ साखी । सोइकहते सोइ होउगे,निकाल न बाहेर आउ ॥ होहुजूरठाढ़ो कहौं, धोखे न जन्म गैवाउ ॥ ६ ॥ चन्द्रचकोरकसिवातजनाई । मानुषबुद्धिदीनपलटाई॥१॥ | साहब कहैहैं कि,हे जीवो ! तुमको गुरुवालोग चन्द्रचकोर कैसो दृष्टांत जनायकै नानाईश्वरमें लगायदियो कैसे जैसे चन्द्रमा को ताकत ताकत चकोर चन्द्ररूपैहै या बुद्धिमानहै तब चकोरको अग्निकी गरमी नहीं लंगहै अग्नि खायजाय। तैसेअपनोस्वरूप जो ब्रह्म ताको जबजानिलहुगे तबतुमको दुःखसुख न जानिपरैगो कोई यह कहेहैं कि, जैसे चन्द्रमा चकोरमें नेहकै है ऐसे तुम ईश्वरनमें प्रीतिकरोगे तौ दुःखसुख न जानिपरैगो यह जो तुम्हारी मनुष्यबुद्धि कि, मैं हंसस्वरूपहीं द्विभुजौं द्विभुजई को होउँगो से पलटायकै ब्रह्ममें लगायदिखें नानादेवतनमें लगायदिये ॥ १ ॥