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(८६) बीजक कबीरदास । साखी । भ्रमको बाँधल ई जगत, यहिबिधि आवैजाई ॥ मानुष जन्महि पाइनर, काहे को जहँडाइ ॥ ६॥ अल्पसौख्यदुखआदिहुअंता। मनभुलानमैगर मैंमंता॥१॥ सुखबिसरायमुक्तिकहँपावै।परिहरिसांचझूठनिजधावै ॥२॥ अनलज्योति डाहै यकसंगानियननेह जसजरैपतंगा॥३॥ | जौने संसारमें अल्प तो सुखहै औ आदिहूमें अंतहूमें दुःखहै ऐसे संसारमें मैगर मैंमेताकहे मतवारो हाथी जो मन सोभुलाईकै मैंमंताकहे मॅहीं ब्रह्महैं या मानिलियो अथवा मैंहीं देहह या मानिलियो।। १।।सुखरूप जे साहब हैं तिनको बिसराई कै कबीरनी कहैहैं कि मुक्ति कहां पावै सांचको छोड़कै झूठ जो धोखा ब्रह्महै तामें तो धावै। यह जीव कैसे सुखपावै ॥ २ ॥ अनलज्योतिनो ब्रह्महै सो एकसंग सब ज्ञानिनको दाहै है अग्नि ब्रह्मको नाम है अज्ञात्वादग्निनामा सौ' । कैसेदाहै जैसे नयननेह कहे देखनके लालचलगे दीपककज्योतिमें पतंगजरैहैं ॥ ३ ॥ करुविचारज्यहिसवदुखजाई।परिहरिझूठाकेरिसगाई॥ ४॥ लालचलागेजन्मसिराईजरामरण नियरायलआई॥५॥ झूठ जो या धोखा ब्रह्म है । अपनो कलेवर तौने की सगाई त्यागिकै परमपुरुष जे श्रीरामचन्द्र तिनको बिचारकरु जाते तेरे सब दुःख आईं ॥४॥ धोखा ब्रह्मके लालच में लगे कि, हमारी मुक्ति होयगी हमको विषयही ते सुख होयग याहीमें लगेलगे जन्मसिरायगयो जरा जो बुढ़ाई औ मरण सो नियराय आया ॥ ५ ॥ साखी ॥ भ्रमको वांधल ई जगत, यहि बिधिअवैजाय ॥ मानुषजन्महि पायनर, काहेकोजहँडाय॥६॥ यही रीतिते भ्रमको बांधा या जगव है वही ब्रह्मते अवै है कहे उत्पन्न होइहै औ जाइहै कहे लीन होइ है ‘मानुष जन्महि पायनर काहेको जहँडाय'